आप जीती तो, पर छोड़ गई कुछ सवाल! क्या जय श्री राम की जगह जय बजरंगबली सांप्रदायिक राजनीति को ही मजबूत नहीं करता है? क्या CAA और शाहीन बाग पर मौन बहुसंख्यक तुष्टिकरण का ही एक उदाहरण नहीं है? क्या डूब जाने के डर से धारा के साथ प्रवाह धारा को मौन सहमति नहीं है? दिल्ली चुनाव के परिणामों ने विमर्श के एक बड़े मैदान का निर्माण किया है। उपरोक्त सवालों को सही जगह और जवाब भारत की राजनीति का भविष्य तय करेगी। दिल्ली विधानसभा चुनावों के परिणामों पर पूरे देश की नज़र थी। बीजेपी के कई सांसदों, बीजेपी या इसके समर्थित राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों, गृहमंत्री और प्रधानमंत्री के आक्रामक प्रचार ने इन चुनावों का कौतूहल बढ़ा दिया था। CAA के ख़िलाफ़ आंदोलन और उसके बाद केंद्र सरकार द्वारा उसे हिंदू-मुस्लिम बहस में बदल देने की कवायद ने इन चुनावों को बिल्कुल अलग रंग दे दिया। लेकिन केजरीवाल ने एक-एक कदम फूंक कर रखा। CAA आंदोलनों पर मौन साधे रहे। पूछे जाने पर नेश्नल टेलीविजन पर हनुमान चालीसा गाने से परहेज़ नहीं किया। महसूस किया कि लोगों के सिर पर कौन सा नशा आसानी से चढ़ता है, और