एक ईमानदार पत्रकार की जिंदगी चुनौतियों से भरी होती है। उसकी पहली और बड़ी चुनौती है कि वह सच्चाई के साथ खबर को जनता तक पहुंचा सके। इसके लिए उसे बहुत मशक्तत नहीं करनी पड़ती क्योंकि जो दिख रहा उसे उसी तरह से पेश कर देना आसान है, कठित तो ये है कि खबर को घुमाकर, काट-छांटकर जनता के सामने इस उद्देश्य के साथ पेश करना कि वह गुमराह हो जाए। किसान आंदोलन में कुछ ऐसा ही हो रहा है। एक बड़ी संख्या काट-छांट के साथ खबर पेश कर रही है तो मुट्ठीभर लोगों की संख्या मुट्ठी बांधकर जो जैसा दिख रहा उसे वैसा पेश कर दे रही है। पत्रकार मनदीप पुनिया की गिरफ्तारी को देखिए। एक फ्रिलांस पत्रकार जो अपने शौक के लिए रिपोर्टिंग करता है। दो महीने से किसान आंदोलन को कवर करने के लिए सिंघु बॉर्डर पर मौजूद है, 29 जनवरी को करीब 60 लोगों की भीड़ हाथ में डंडे और पत्थर लेकर आती है और किसानों पर हमला करने लगती है। पुलिस उन्हें ऐसा करने से रोकने की कोशिश ही नहीं करती बल्कि उन्हें एक तरह से बैकअप दिया जा रहा था। अन्य मीडिया संस्थानों ने दिखाया कि आंदोलनकारियों के खिलाफ स्थानीय लोग गुस्से में है वह...