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Showing posts from September 25, 2020

सिर्फ UPSC जिहाद पर ही नहीं बल्कि सुरेश चव्हाणके पर भी बैन जरूरी, 1-1 शब्द नफरत से भरा है

  मीडिया का वास्तविक काम बिना किसी लाग-लपेट के लोगों तक सूचना पहुंचाना है। लेकिन पिछले कुछ वर्षो से इसके स्वरुप में व्यापक बदलाव आए हैं। सूचना के बजाय एक विचार भी लोगों तक पहुंचाए जा रहे हैं। यहां तक तो ठीक था लेकिन धीरे धीरे सुनियोजित तरीके से एक विचारधारा पर हमला हुआ। सोच को कुंद करने की कोशिश शुरु हो गई। ताज्जुब की बात ये कि इसमें भी मीडिया के तमाम संस्थान सफल रहे। रिपब्लिक भारत ने तो टीआरपी की जंग में खुद को सबसे ऊपर खड़ा कर लिया।    ताजा मामला सुदर्शन टीवी से जुड़ा है। कहने को तो ये न्यूज चैनल है लेकिन इस पर वही न्यूज चलती है जिसमें सरकार से सवाल न पूछे जाए। जनता से जुड़े सरोकार का तो कोई मतलब ही नहीं। मतलब है तो बस नफरत से। जी हां नफरत से। चैनल के प्रमुख सुरेश चव्हाणके बिंदास बोल के जरिए लोगों के सामने आए मुद्दों को लेकर आते हैं जिसे समाज की शांति और एकता पर कुठाराघात करता हो। जो मुसलमानों को कठमुल्ला कहकर संबोधित करता हो उससे भला शांति की अपील कैसे की जा सकती है?   सुप्रीम कोर्ट ने सुदर्शन टीवी के बिंदास बोल के जरिए प्रसारित होने वाले UPSC जिहाद पर रोक लगा दी। इस कार्यक्रम के चा

नोटबंदी, जीएसटी जैसे ‘मास्टरस्ट्रोक’ रहे फेल, फिर मोदी सरकार के कृषि बिल पर कैसे भरोसा करे किसान?

  2014 से पहले जब नई योजनाएं लागू की जाती थी तब उसे लेकर बहुत ढिंठोरा नहीं पीटा जाता था, उसकी सफलता असफलता उस योजना के लागू होने के बाद पता चलती थी, लेकिन 2014 भारतीय इतिहास का ऐतिहासिक साल रहा, सत्ता परिवर्तन हुआ और नरेंद्र मोदी जी देश के प्रधानमंत्री बने। उसके बाद जो योजनाएं शुरु हुई वह सभी मास्टरस्ट्रोक कही गई। नोटबंदी को भाजपा ने मौद्रिक सुधार बताकर पेश किया,   जीएसटी   को कर सुधार,   तालाबंदी   को महामारी से बचाव के लिए मास्टरस्ट्रोक बताया गया, चौथा सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक   कृषि कानून   है, जिसे किसानों के लिए वरदान बताया जा रहा है।    सरकार के तमाम मास्टरस्ट्रोक सुधार के लिए ही होते हैं लेकिन सुधार किसका होता है और सुधरता कौन है ये सुधारक नहीं बताता। यहां तक कि जिसके लिए ये सुधार किए जा रहे हैं उसके प्रति भी इनकी कोई जवाबदेही नहीं होती। वह लाख विरोध करते हुए मर जाए लेकिन इनके कानों पर जू तक नहीं रेंगती। किसान एवं कॉरपोरेट की इस शिखर वार्ता में अब सरकार कहीं नहीं रही। उसने बाजार खोल दिए हैं। अब मनमर्जी चलेगी।    राज्यसभा में पारित इस कानून को लेकर तमाम विरोधाभास है, जैसे अगर सरका