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मुख्तार अंसारी की क्राइम हिस्ट्री, परिवार के कहने पर चलता तो नहीं बनता पूर्वांचल का सबसे बड़ा डॉन

  Author :-   RAJESH SAHU - कौन है मुख्तार अंसारी? - एक स्वतंत्रता सेनानी का पौत्र कैसे बन गया डॉन? - गरीबों का मसीहा या सबसे बड़ा अपराधी? - रास्ते में नहीं तो क्या जेल में होगी मुख्तार की हत्या? - क्या कोर्ट और जांच एजेंसियां उसे नहीं दिलवा सकती सजा? इन सभी सवालों के जवाब आज के इस आर्टिकल में हम विस्तार से बताएंगे। वेब सीरीज मिर्जापुर देखी होगी आपने। कालीन भैया को भी जानते होंगे। उनका धंधा, उनका रुतबा और उनका अपराध सबकुछ एकदम टॉप लेवल का हुआ करता था। कब किसे गोली मार दें, कब किसको धंधा सौंपकर राजा बना दे सबकुछ कालीन भैया के मूड पर डिपेंड करता था। जिधर गुजरते इलाका के लोग खड़े होकर सलामी देते।  कालीन फिल्मी कैरेक्टर है। लेकिन मुख्तार अंसारी रियल कालीन भैया हैं। वैसे यहां थे भी कहा जा सकता है। जिधर से गुजरते थे उधर समर्थक दौड़ पड़ते थे, विरोधी घरों में घुस जाते थे। 18 लोगों की हत्याओं का केस चल रहा। 10 मुकदमे हत्या के प्रयास के चल रहे। गैंगस्टर एक्ट, टाडा, एनएसए, आर्म्स एक्ट व मकोका ऐक्ट भी लगा हुआ है। अपराध की दुनिया के सारे केस लगने के बावजूद मुख्तार पूर्वांचल के एक बड़े हिस्से में पू
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युवाओं के भविष्य को अंधकार में डाल रही मोदी सरकार, हरियाणा-पंजाब में रोजगार की स्थिति बद से बदतर- अनुपम

'युवा हल्ला बोल' के राष्ट्रीय संयोजक सह युवा नेता अनुपम रविवार को हरियाणा, पंजाब एवं चंडीगढ़ की सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार पर हमलावर रहे। बेहद आक्रोश के साथ कहा की युवाओं का भविष्य अंधकार में डाला जा रहा है। युवाओं को डिग्री प्राप्त करने के बाद भी रोजगार नहीं मिल रही है जो की अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। 'युवा हल्ला बोल' देश के अन्य राज्यों के साथ साथ हरियाणा, पंजाब एवं चंडीगढ़ के युवाओं को भी रोजगार दिलाने के लिए आवाज़ बुलंद करेगी। इसमें मुख्य रूप से सरकारी भर्तियों में हो रही देरी, नौकरियों में कटौती और रोज़गार के सवाल पर अभ्यर्थियों के साथ चर्चा की जाएगी।   यह भी पढ़े-  मध्य प्रदेश के शिक्षकों और कितना करना होगा इंतजार, तीन साल से सरकार के सामने लगा रहे अर्जियां   संगठन द्वारा देश के बड़े शहरों सहित राज्यों की राजधानी में युवा महापंचायत का आयोजन चल रहा है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 27 अप्रैल को कार्यक्रम होने जा रही है। जबकि राजधानी दिल्ली में 14 अप्रैल के कार्यक्रम के लिए प्रशासन से अनुमति की प्रक्रिया चल रही है। कई विभागों में रिक्तियों के बावजूद सरकार बहाली

असम में भाजपा प्रत्याशी की गाड़ी में EVM खुद ही जाकर बैठी या किडनैप हुई?

    असम में भाजपा और ईवीएम के पुराने रिश्ते की एक नई कहानी सामने आई है। इस कहानी में चुनाव आयोग फूफा बनकर अपना पक्ष रखने आए लेकिन अब फंस गए हैं। ऐसे फंसे की लोग मजे लेने लगे। अब चुनाव आयोग को गुस्सा आ जाए उससे पहले ये पूरा मामला जान लीजिए।    1 अप्रैल को असम में दूसरे चारण की वोटिंग हुई। शाम को पथरकंडी विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी कृष्णेंदु पॉल की कार में ईवीएम मिली। इस मामले से जुड़ा वीडियो जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुआ विपक्ष ने हंगामा कर दिया।  प्रियंका गांधी , शशि थरूर, दिग्विजय सिंह, नितिन राउत ने भाजपा पर निशाना साधना शुरु कर दिया। इसीबीच सामने आया  चुनाव आयोग का बयान ।    Read More यह भी पढ़ें - भगत सिंह आज होते तो किसानों के साथ होते, भाजपा समर्थक उन्हें देशद्रोही मानता? कोरोना को भगाने का एकमात्र विकल्प है कि हर राज्यों में चुनाव करवा दिया जाए युवा पंचायत - बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ एकीकृत संघर्ष का ऐलान! क्या बीजेपी के पास चुनाव लड़वाने के लिए उम्मीदवार नहीं?

असम में भाजपा प्रत्याशी की गाड़ी में EVM खुद ही जाकर बैठी या किडनैप हुई?

  असम में भाजपा और ईवीएम के पुराने रिश्ते की एक नई कहानी सामने आई है। इस कहानी में चुनाव आयोग फूफा बनकर अपना पक्ष रखने आए लेकिन अब फंस गए हैं। ऐसे फंसे की लोग मजे लेने लगे। अब चुनाव आयोग को गुस्सा आ जाए उससे पहले ये पूरा मामला जान लीजिए।    1 अप्रैल को असम में दूसरे चारण की वोटिंग हुई। शाम को पथरकंडी विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी कृष्णेंदु पॉल की कार में ईवीएम मिली। इस मामले से जुड़ा वीडियो जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुआ विपक्ष ने हंगामा कर दिया।   प्रियंका गांधी , शशि थरूर, दिग्विजय सिंह, नितिन राउत ने भाजपा पर निशाना साधना शुरु कर दिया। इसीबीच सामने आया   चुनाव आयोग का बयान ।    उम्मीद थी कि चुनाव आयोग कह देगा कि ये रिजर्व्ड बॉक्सेस थे जिसका मतदान से कोई मतलब नहीं। लेकिन इसबार स्क्रिप्ट में चेंज था। और फिर एक ही बात बार-बार बोलेंगे तो जनता को उनके निष्पक्ष होने पर भरोसा कैसे रहेगा। सो उन्होंने कहा- ईवीएम लेकर निकले तो रास्ते में गाड़ी खराब हो गई, लिफ्ट मांगा तो एक बोलेरो रुकी और हम उसी के जरिए आगे बढ़े। हमें नहीं पता था की वो गाड़ी भाजपा प्रत्याशी कृष्णेंदु पॉल की है।    कई लोग ईवीएम

कोरोना को भगाने का एकमात्र विकल्प है कि हर राज्यों में चुनाव करवा दिया जाए

  देश के पांच राज्यों को छोड़कर कोरोना वायरस महामारी फिर से चुनौती बन चुकी है। जिन पांच राज्यों में कोरोना नहीं है वहां चुनाव है। इसी को लेकर हमने एक पोल करवाया।  जनता से पूछा-    कोरोना वायरस कैसे खत्म होगा?   - लॉकडाउन से - वैक्सीन से - मास्क से - चुनाव से   अधिकतर लोगों ने कहा- चुनाव से। सैद्धांतिक रूप से देखेंगे तो ये गलत जवाब लगेगा। लेकिन हमारे नेताओं ने कोरोना को लेकर ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि यही जवाब सबसे परफेक्ट लगता है। गुजरात के राजकोट से भाजपा विधायक गोविंद पटेल ने कहा भाजपा के कार्यकर्ता मेहनती होते हैं, जो मेहनत करते हैं उनको कोरोना नहीं हो सकता है। ऐसे में कोरोना को हराने के लिए जरूरी है कि सभी देशवासियों को भाजपा का कार्यकर्ता बन जाना चाहिए। है कि नहीं? अब पीएम मोदी को देखिए। जब भी कोरोना पर बात करते हैं जनता को दो गज की दूरी और मास्क है जरूरी का अद्वितीय ज्ञान देते हैं। लेकिन जैसे ही रैलियों में जाते हैं मानों ये परम ज्ञान घर पर ही भूल जाते हैं। वहां भीड़ देखकर गदगद हो जाते हैं। कह भी देते हैं कि मैने जीवन में इतना बड़ा जनसमूह कभी देखा ही नहीं।    अब सवाल है कि आम आद

भगत सिंह आज होते तो किसानों के साथ होते, भाजपा समर्थक उन्हें देशद्रोही मानता?

  लाहौर हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान भगत सिंह ने कहा था कि- ' क्रांति संसार का नियम है। वह मानवीय प्रगति का रहस्य है। लेकिन उनमें रक्तरंजित संघर्ष बिल्कुल लाजिमी नहीं है और न उसमें व्यक्तियों के खिलाफ हिंसा की कोई जगह है। क्रांति बम और पिस्तौल का सम्प्रदाय नहीं है'   भगत सिंह की इन बातों को अब वर्तमान में रखकर देखिए। केंद्र की मोदी सरकार ने तीन नए कृषि कानून पास किए जिसके विरोध में किसानों ने दिल्ली के विभिन्न बॉर्डरों पर धरना देना शुरु कर दिया। चार महीने बीत गए लेकिन उनकी मांगो पर किसी तरह का अमल नहीं किया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में   किसानों की मौत   हो गई। भाजपा के तमाम नेता और मंत्री उनकी शहादत को व्यर्थ मानते हैं, उन्हें किसान मानने से भी इंकार करने से कुुछ गुरेज नहीं किया।    आज की परिस्थिति में भगत सिंह को रखकर देखिए। वह होते तो किसके समर्थन में खड़े होते? किसान या सरकार? स्वाभाविक सी बात है कि वह   किसानों के हित   में ही खड़े होते। वह सरकार से कहते कि जिसके लिए आपने कानून बनाया अगर उसे ही पसंद नहीं तो फिर क्यों? आप क्यों नहीं किसानों से पूछकर उनके हिसाब से कानून बना

युवा पंचायत - बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ एकीकृत संघर्ष का ऐलान!

  किसानों के बाद अब युवाओं ने ठान लिया है कि राज्यों और अपनी-अपनी भर्ती परीक्षाओं की सीमाओं को तोड़कर एकीकृत आंदोलन करेंगे और बेतहाशा बढ़ी बेरोज़गारी पर सरकार को घेरेंगे। बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ काम कर रहे युवा हल्ला बोल ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से पोस्ट करते हुए सूचना दी है कि 24 मार्च को इलाहाबाद में युवाओं की महापंचायत होगी। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे और बेरोज़गारी का दंश झेल रहे युवा इस पंचायत में शिरकत करेंगे।   समस्या किसी एक भर्ती परीक्षा या आयोग में नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था में युवा हल्ला बोल के संयोजक अनुपम ने बातचीत में हमें बताया, “युवा धीरे-धीरे समझ रहे हैं कि समस्या किसी एक भर्ती परीक्षा या किसी एक आयोग से जुड़ा हुआ नहीं है। समस्या पूरी व्यवस्था में है, जिसके ज़रिए नौकरियाँ लगातार कम हो रही हैं।” युवाओं  को इस व्यवस्था ने कमज़ोर किया है और आश्रित बनाकर छोड़ दिया है।   क्यों नहीं बेरोज़गारी का मुद्दा सरकार को डरा पाती है? गौरतलब है कि आए दिन कर्मचारी चयन आयोग, उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ,   बिहार शिक्षक भर्ती ,   मप्र शिक्षक भर्ती   आदि से संबंधित हैशट