बच्चे एक बागीचे की कली की तरह होते हैं सो सावधानी और प्यार से पाले जाने चाहिए। वे देश के भविष्य और कल के नागरिक हैं। - जवाहर लाल नेहरु के इस कथन को अगर बिहार प्रशासन ने पढ़ा-सुना-समझा होता तो बिहार में शनिवार सुबह तक 83 बच्चे मर न गए होते।
Acute Encephalitis Syndrome या चमकी बुखार या दिमागी बुखार - अलग-अलग नामों से जाने जाने वाले इस सिंड्रोम ने 2012 में 120, 2013 में 39 और 2014 में 90 जान ले ली थी। इसके बाद 2015 में बिहार स्वास्थ्य विभाग और यूनीसेफ ने मिलकर कुछ SOPs तय किए थे। यानी - Standard Operating Procedures.
SOPs के मुताबिक -
- आशा वर्कर्स, आंगनवाडी कर्मचारी, ऑक्ज़िलरी नर्स मिडवाइफ घर घर में जातीं और जाँच करती कि बच्चों को तेज़ बुख़ार तो नहीं और ब्लड शुकर की मात्रा कम तो नहीं है।
- हर पंचायत में एक स्वास्थ्य केंद्र होता, जिसमें ब्लड शुगर जाँचने के लिए उपकरण और ORS के पर्याप्त पैकेट होना ज़रूरी है।
2015 में 11, 2016 - 04, 2017-11 और 2018-7 बच्चे Acute Encephalitis Syndrome की वजह से मर गए। स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि इन SOPs ने Acute Encephalitis Syndrome के कारण हो रही मौतों से निबटने में काफी मदद की।
फर्सट्पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल उनको फॉलो नहीं किया गया। मुज़्जफरपुर की एक आशा वर्कर ने बताया कि पिछले सालों में उन्हें डोर-टू-डोर विज़िट के आदेश मिलते थे। लेकिन इस साल कोई ऐसा आदेश नहीं मिला। उन्होंने ये भी कहा कि उन्हें न तो बल्ड शुगर जाँचने का उपकरण दिया गया न ही पर्याप्त मात्रा में ORS के पैकेट।
ख़ैर, ये मौतें क्यों हो रही हैं, इस पर कोई पुख़्ता जानकारी नहीं है। कोई कहता है लीची के कारण। लेकिन अगर लीची ही एक कारण होती, तो हर साल होती। कुछ रिसर्चर कहते हैं कि अत्यधिक नमी, गर्मी और साफ़-सफ़ाई भी Acute Encephalitis Syndrome की एक वजह है। इस बार जितने भी केसेज़ अस्पतालों तक पहुँचे उसमें से ज्यादातर बच्चे आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों से थे। ज्यादातर के अभिभावक निरक्षर थे। कुछ लोगों का मानना है कि रात को खाली पेट सोने वाले बच्चों में शुगर लेवल की कमी भी इस सिंड्रोम का एक बड़ा कारण है। बावजूद इन सबके सूबे के ज़मीनी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के पास ORS के पैकेट तक मौजूद नहीं हैं।
कभी ऑक्सीजन की कमी से उत्तर प्रदेश में बच्चों की मौत तो लगभग हर साल चमकी बुख़ार के कारण बच्चों की मौत - सरकारी और प्रशासनिक निर्लज्जता, कामचोरी और नीति-नपुंसकता का प्रमाण हो सकता है।
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