प्रणय रॉय को सेबी ने एनडीटीवी के डायरेक्टर पद से प्रतिबंधित कर दिया है। प्रमोटर्स स्टॉक मार्केट से अगले दो सालों तक लोन भी नहीं ले सकते हैं। इसका भी प्रतिबंध है।
ख़बर एनडीटीवी से जुड़ी ज़रूर है लेकिन केवल एनडीटीवी की नहीं। ये ख़बर उन सभी के लिए है जिन्हें गौरी लंकेश की हत्या ने दुखी किया। उन सभी के लिए भी है जो देश में बढ़ रहे हेट क्राइम्स के खिलाफ बोल रहे थे, लिख रहे थे। उन सभी के लिए भी जो हिंदुत्व या इस्लाम को देश और समाज के बाद रखते हैं।
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उन सभी नवागंतुक पत्रकारों के लिए एक वॉर्निंग सायरन है जो सिद्धांतों में सहेजी हुई पत्रकारिता करने आए हैं। उन सभी पत्रकारों के लिए एक रेड सिग्नल है जो सत्ताधीशों के तंबू की नहीं बल्कि उस तंबू से उजड़े लोगों के दुख-दर्द को दिखाने को पत्रकारिता समझते हैं।
जहाँ ये ख़बर काफी लोगों के लिए दुख और चिंता का कारण है, वहीं कुछ लोगों के लिए ख़ुशी और जीत का आधार भी। मसलन, वे तमाम लोग जो नए नोटों में चिप होने की ख़बर सुनकर ख़ुश और गौरवान्वित होते थे, वे लोग, जो ये जानकर आश्चर्यचकित होते थे कि एलियन हमारे यान ले गए, वे लोग, जो न्यूज़रूम में दौड़-दौड़ कर डिबेट सेशन कंडक्ट करने वाले एंकर को देखकर सोचते थे कि यही इच भगवान है, उन सभी के लिए ये ख़बर खुशगवार है।
एनडीटीवी में तनख़्वाह की अनियमितता की ख़बरें भी सुनने में आई थी। ऐसे में इन हालातों में अब एनडीटीवी किस दिशा में आगे बढ़ेगा और कैसे - ये देखने वाला विषय होगा। पैसा ज़रूरी है। पैसे के बिना कुछ भी संभव नहीं।
बहरहाल, अमित शाह और नरेंद्र मोदी के बारे में कहा जाता है कि ये जोड़ अपने दुश्मनों (प्रतिद्वंद्वियों) को छोड़ती नहीं। राजनैतिक पार्टियों का जो हश्र हुआ है वो हम सबने देखा। स्वतंत्र आवाज़ों (गौरी लंकेश, कलबुर्गी) की हत्या हमारे सामने की बात है। जेएनयू जैसे संस्थान का डिफेमेशन हम सबके सामने हुआ। ज़ाहिर है कि ये सब या फिर इनके शह में रहने वाले उस विचारधारा के आलोचक थे जिसके पोस्टर ब्वॉय मोदी और शाह हैं।
बचा-ख़ुचा मीडिया और स्वतंत्र पत्रकार वे दुश्मन हैं, जो पिछले कार्यकाल में साधे नहीं गए। इस बार साधे जाएँगे।
"अगला नंबर आपका है।
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