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Tashkent files ke baad yavatmal files kyo nahi

महाराष्ट्र सरकार ने 'अवनी' कि जबरन हत्या की ?

अवनी बाघिन थी. यवतमाल के एक जंगल में रहती थी. अब बाघिन थी, तो जायज है शिकार करेगी ही. लेकिन उसे रिहायशी इलाकों में कभी नहीं देखा गया. जंगल में अपने शावकों के साथ रहती थी. उस पर 'आदमखोर' का तमगा मढ़ा गया. उसे पकड़ कर कहीं और ले जाया जा सकता था. लेकिन उसे मरना उचित समझा गया. क्योंकि वो सिर्फ 'आदमखोर' नहीं थी. वो रोड़ा बन चुकी थी किसी कॉन्ट्रैक्ट की, शायद इसलिए उसे मारा गया ?
3 नवंबर 2018 को खबर आयी की यवतमाल में पंधरकावड़ा जंगल के आसपास रहने वाले लोगों की नींद हराम कर चुकी नरभक्षी बाघिन अवनि को मार दिया गया है. अवनि ने 14 इंसानों को अपना शिकार बनाया था. महाराष्ट्र सरकार ने अवनि को मारने के लिए 'शूट-एट-साइट' का आदेश दिया था.
‘अवनी ‘आदमख़ोर’ नहीं थी’
अवनी की मौत को लेकर कहानी गढ़ी गई है. उनका आरोप है कि सरकार अवनी को मारना ही चाहती थी जिसके लिए पहले बाघिन को ‘आदमख़ोर’ घोषित किया गया और बाद में उसे मारने के पीछे ‘परिस्थितियों’ को वजह बताया गया. अवनी आदमख़ोर नहीं थी और वन विभाग के पास इस बात के ठोस सबूत नहीं हैं कि 13 लोगों की मौतों के लिए वही ज़िम्मेदार थी.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने भी अपनी एक रिपोर्ट में विशेषज्ञों के हवाले से बताया है कि परीक्षण के बाद यह साबित नहीं हो सका कि अवनी के हमले से ही इन लोगों की मौत हुई. वहीं वन विभाग के अधिकारी से वार्ता के दौरान पता चला की अगर बाघ जंगल में घुसे इंसानों का शिकार करता है, तो उसे आदमख़ोर नहीं कहा जा सकता.
अवनी को मारने में नियमों का ‘उल्लंघन’ हुआ
रिपोर्टों के मुताबिक़ सुप्रीम कोर्ट का निर्देश था कि मारने से पहले अवनी को बेहोश करने वाला इंजेक्शन दिया जाए. सर्वोच्च अदालत का यह भी निर्देश था कि पहले बाघिन को पकड़ा जाए और फिर गोली मारी जाए. लेकिन उसके पहले बाघिन अवनी के दस महीने के दोनों बच्चों को क़ब्जे में लिया जाए, क्योंकि अवनी की मौत के बाद उनका जंगल में जी पाना संभव नहीं होगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ
यहाँ भी देखें : Do we all need Modi's 'FIT' Pill?
जेरिल ए बनाइट वन्य जीवन पर काम करने वाले कार्यकर्ता हैं. अवनी के मामले में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. जेरिल का दावा है कि अवनी को मारने में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के नियमों का घोर उल्लंघन हुआ है. जेरिल कहते हैं, ‘पहली बात तो यही है कि इस तरह के अभियान केवल उजाले में चलाए जाते हैं. वहीं एनटीसीए के नियमों के विपरीत अवनी की हत्या के समय कोई पशुचिकित्सक मौके पर मौजूद नहीं था, न ही वहां पुलिस थी. अवनी जैसे किसी विशेष बाघ की बात छोड़ भी दें, तो इतनी रात में किसी बाघ की लैंगिक पहचान भी मुश्किल है.’
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