26 जनवरी से ठीक 15 दिन पहले यानि 11 जनवरी को कुछ ऐसा हुआ जो शायद बहुत पहले हो जाना चाहिए था। क्या जानबूझ कर मामले को नज़र अंदाज़ किया जा रहा था, क्या सबूतों का अभाव था या,कोई और दबाव था? वैसे अगर सोचने बैठ जाएं तो सवालों का ज़ख़ीरा खड़ा हो जाएगा जिसे भेद पाना शायद मुश्किल हो. 11 जनवरी को जम्मू कश्मीर की पुलिस बैरिकेडिंग लगाकर चेकिंग कर रही थी। उसी समय कुछ ऐसा होता है जिससे पुलिस की आँखें खुली की खुली रह जाती हैं. उसके 2 कारण थे:
पहला कि उन्हें कभी लगा नहीं था कि हिजबुल के आतंकवादी इतनी आसानी से उनके हाथ लग जाएंगे. ये दोनों हिजबुल के कमांडर नवीद बाबा और अल्ताफ थे जो कश्मीर पुलिस के निशाने पर कई दिनों से थे और उनके साथ इरफ़ान भी था जो पेशे से तो वकील है लेकिन वकालत आतंकवाद की करता था.
दूसरा जिसके नाम की सनसनी पूरे देश में फैली हुई है, जिसने खाकी रंग को दाग दाग कर दिया; पुलिस के डीएसपी दविंदर सिंह। सिंह श्रीनगर एयरपोर्ट के एंटी हाई जैकिंग स्क्वाड का हिस्सा था. इस अधिकारी को विदेश से आये मेहमानों के साथ भी देखा गया है जिन्हें मोदी ने कश्मीर का जायजा लेने के लिए न्यौता दिया था.
आखिर कौन है यह दविंदर सिंह?
दविंदर सिंह का जन्म 1957 में पठानकोट के त्राल में हुआ था, इसी गाँव में आतंकवादी बुरहान वानी भी पैदा हुआ और पुलिस एनकाउंटर में मार दिया गया था. दविंदर ने श्रीनगर के अमर सिंह कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया था. दविंदर की शादी एक टीचर से हुई। इसके 3 बच्चे हैं। 2 बेटियां, बांग्लादेश से मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं और 1 बेटा है जिसकी पढ़ाई श्रीनगर के स्कूल में चल रही है.
1994 से दविंदर की दिलचस्प कहानी शुरू होती है जब उसकी भर्ती सब इंस्पेक्टर के पद पर हुई, उसके बाद उसे स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप और टास्क फोर्स में शामिल कर लिया जाता है. 12 साल के बाद 2006 में दविंदर को पुलिस उपाधीक्षक के रूप में पदोन्नति मिली. सन 2003 में यूनाइटेड नेशंस के शांति मिशन के लिए सिंह को भारत ने एक साल के लिए कोसोवा भी भेजा था. दविंदर का नाम उन 76 अधिकारियों में आता है जिन्हें खुद राष्ट्रपति ने मैडल देकर सम्मान किया था. उन्हें ये मेडल एंटी टेरर कारनामों की बहादुरी के लिए मिला था. 25 साल के लंबे सेवावधि में सिंह लगातार विवादों से जूझते रहे लेकिन पूरा पुलिस महकमा और यहां तक की जांच एजेंसियां एकदम सन्न मारकर बैठीं थीं। ऐसा लगता है मानो सिंह को कोई खास किस्म की छूट मिली हुई थी।
सिंह ने संविधान की नहीं बल्कि वर्दी को बदनाम करने की कसम खाई हो.....
सिंह और विवादों का रिश्ता चोली-दामन की तरह रहा. सिंह के इरादे तभी मजबूत हो गए थे जब पहली बार ही उनपर कोई कार्रवाई नहीं की गई, मामला यह था कि कुछ गुंडों ने बंदूक के दम पर ट्रक को लूटा था, तत्कालीन मुख्यमंत्री, जे एंड के ने इसकी शिकायत डीजीपी से की थी कि लुटेरों को राइफल सिंह ने दिया था, लेकिन इस मामले को ठंडे बस्ते में फेंक दिया गया, जिससे सिंह के इरादे गरम हो गए.
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उसके बाद एक व्यवसायी ने उस पर जबरन वसूली की शिकायत दर्ज कराई, लेकिन उस शिकायत का भी कोई नतीजा नहीं निकला. सिंह का नाम एक बार फिर चर्चा में आया जब 2001 में जनता उसके खिलाफ भड़क गई थी क्योंकि उसके चार्ज के दौरान हिरासत में ह्त्या के मामले लगातार बढ़ते जा रहे थे. लगातार शिकायतों और विरोध के बाद दविंदर को स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप से हटाकर पुलिस कंट्रोल रूम में भेज दिया, लेकिन दविंदर के हौसले तो मजबूत थे। शायद खाकी पहनते समय उसने कोई और कसम खाई थी। सो ये छोटे-मोटे एक्शन उसके लिए कोई मायने नहीं रखते थे.
इसी दौरान सिंह की पदोन्नति डीएसपी रैंक पर हो जाती है, और फिर इस अधिकारी पर 2015 में एफ़आईआर दर्ज कराया जाता है, मामला जबरन पैसा वसूली का था। आरोप लगा कि जो पैसे नहीं देता सिंह उसे फँसा कर जेल में सड़ ने के लिए छोड़ देता था.
सिंह के स्तर से ये सब केस एकदम छुटपुटिये केस थे क्योंकि जिस मामले ने सिंह को अब चर्चाओं में खड़ा किया है वह आज़ाद भारत के इतिहास का सबसे ख़ौफ़नाक दिन कहा जा सकता है।
सिंह के स्तर से ये सब केस एकदम छुटपुटिये केस थे क्योंकि जिस मामले ने सिंह को अब चर्चाओं में खड़ा किया है वह आज़ाद भारत के इतिहास का सबसे ख़ौफ़नाक दिन कहा जा सकता है।
अफजल गुरु का पत्र, दविंदर का जिक्र!
जबसे सिंह की गिरफ्तारी हुई है, आतंकी अफजल गुरु के पत्र की खोजबीन बड़े जोरों से हो रही है, यह वही पत्र था जिसे अफजल ने अपने वकील सुशील कुमार को लिखा था। इस ख़त में जिक्र है उसी विवादित पुलिस अधिकारी दविंदर सिंह का. ख़त पढ़ने पर पता चलता है कि दविंदर ने अफजल को एक ख़ास काम सौंपा था. पत्र में अफजल ने लिखा है कि हुम्हामा एसटीएफ कैंप में एक बार उसे खूब टार्चर किया गया था और बिजली के झटके दिए गए। खुद को बचाने के लिए उसने पुलिस को 1 लाख रुपये देने का वादा किया. पैसों का इंतज़ाम करने के लिए उसकी पत्नी ने जेवर बेच दिए और पुलिस ने उसकी गाड़ी भी रख ली. गुरु ने लिखा था कि इस पूरे प्रक्रिया में दविंदर की सक्रिय भूमिका थीं .
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आगे पढ़ने पर पता चला कि अफ़जल के मित्र ने उसकी मुलाकात डीएसपी दविंदर से कराई, जहां दविंदर ने उसे एक ख़ास काम सौंपा. काम था - दविंदर के साथी को दिल्ली में कमरा दिलाना. उसने लिखा कि चूंकि मुझे दिल्ली की जानकारी थी इसलिए मैंने उसे दिल्ली में कमरा दिलवा दिया था। फिर लगातार दविंदर और हमारी बात फोन पर होती रही, कुछ रोज़ बाद उसने बोला मुझे कार चाहिए तो मैंने उसे करोल बाग़ से कार भी खरीद कर दी लेकिन वो आदमी हमेशा मुझे संदिग्ध लगता था. गुरु के पत्र से पता चलता है इस आदमी का नाम मोहम्मद है , वही मोहम्मद जिसने संसद हमले की पूरी प्लानिंग की थी और हमले के दौरान ही उसकी मौत हो गई थी.
2001 का संसद हमला मतलब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर पर हमला और इसमें साफ़ तौर पर डीएसपी दविंदर की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगा था. सवाल यह उठता है कि आखिर किसके शय में पुलिस महकमे के नाकों तले ये सब खेल खेला जा रहा था? पुलिस किसी बाहरी दबाव में थी, असक्षम थी या फिर खुद कर्ता-धर्ता थी?
दविंदर पिछले साल पुलवामा हमले के दौरान भी वहीं तैनात था. ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि जो अधिकारी लगातार वर्दी को कलंकित करता आ रहा हो, जिसके ऊपर देशद्रोह जैसे संगीन आरोप लगे हों वो लगातार पदोन्नति पाकर बड़े रैंक पर कैसे चला जाता है?
पुलवामा हमले में खूब चीखा-चिल्ली हुई, तत्कालीन आर्मी चीफ़ बिपिन रावत से मीडिया ने पूछा भी था कि बड़े हमले के इनपुट मिले हैं, आपकी क्या तैयारी है, लेकिन रावत आश्वासन देकर चलते बने.
पुलवामा हमले में खूब चीखा-चिल्ली हुई, तत्कालीन आर्मी चीफ़ बिपिन रावत से मीडिया ने पूछा भी था कि बड़े हमले के इनपुट मिले हैं, आपकी क्या तैयारी है, लेकिन रावत आश्वासन देकर चलते बने.
चुनाव का माहौल था मोदी सरकार हर तरीके से विफल हो चुकी थी, 5 साल के शासन के बाद भाजपा को उसका कद सिमटता हुआ दिखाई देने लगा था। उनके पास एक ही चारा बचा था - राष्ट्रवाद। पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर हमला हुआ, टीवी पर हाय तौबा मचा, सरकार ने कोई जाँच नहीं करवाई और अंततः पाकिस्तान पर हवाई हमला कर दिया। नाम दिया गया- एयर स्ट्राइक। दिन रात इस एयर स्ट्राइक को ब्रांडिग के तौर पर बेचा गया। चुनाव हुए, सरकार बनी औऱ वो भी पहले से ज्यादा बड़े जनादेश के साथ। घटनाओं के संबंध कहते हैं कि जाँच करवाई जाए। शायद बड़े-बड़े नकाब उतरें। शायद सफ़ेद पोशाकों के अंदर का कालापन सामने आए।
अचानक कैसे जगी पुलिस?
पिछले दिनों इनपुट आया था कि कई हिन्दू नेता और आरएसएस के सदस्य आतंकियों के निशाने पर हैं. आइएसआईएस के तीन आतंकियों से पूछताछ से पता चलता है दिल्ली चुनाव से जुड़े नेताओं को नुकसान पहुँचाकर चुनाव को सांप्रदायिक रंग देना चाहते थे. जिसके बाद सुरक्षा एजेंसियाँ एकदम चाक चौबंद होकर अपने काम में जुट गईं. इसी बीच मोस्ट वांटेड आतंकी नवीद बाबू जो पहले पुलिस कांस्टेबल था लेकिन अब हिजबुल का कमांडर था, उसका संपर्क डीएसपी सिंह से होता है और पुलिस ने जैसे ठान लिया था कि इस बार वो अपने को पूरी सफाई से खत्म करेंगे. पुलिस का शक उस समय बढ़ गया जब दविंदर 11 तारीख को 4 दिनों की छुट्टी अचानक लेकर गायब हो जाता है और पुलिस इसी मौके के इंतज़ार में आँख बिछाए बैठी थी. उस दिन एकदम प्लानिंग के अनुसार सब कुछ चलता रहा, उसे पकड़ने के लिए उच्च स्तरीय टीम जुटी हुई थी और आखिरकार पुलिस को सफलता मिल ही गई.
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पुलिस को एक साथ इतनी बड़ी सफलता मिली लेकिन भारत के हुक्मरान खामोश बैठे रहे, शायद पुलिस को उनका काम नहीं भाया तो वहीं हर बार की तरह इसे धार्मिक रंग दिया जाने लगा. देश की पार्टियां एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने लगी. पुलिस की मानें तो सिंह ने शोपिया से लाकर नवीद को अपने घर में पनाह दी थी, सिंह का घर जम्मू कश्मीर के ऐसे इलाके में जहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता. यहीं नहीं वो त्राल में भी आतंकियों को पैसे के बदले पनाह देता रहा था.
और शुरू हो गई जांच प्रक्रिया!
अब जांच एजेंसियाँ सिंह के बैंक खातों, संपत्ति और दूसरे लेन देन को खंगालने में जुट गई है. सिंह से जुड़ी हर प्रकार की चल अचल संपत्ति का ब्यौरा जुटाया जा रहा है. आईबी राव, मिलिट्री एजेंसी एक एक करके सभी सिंह से पूछताछ कर रही है, उन्हें उम्मीद है कि आतंकवादी हमलों से जुडी कई जानकारी मिलेगी. इसी बीच यह भी पता चला है कि सिंह ने नवीद से 12 लाख रुपये लिए थे जिसके बदले वो उसे चंडीगढ़ ले जाता वहां उसे कुछ महीनों तक सुरक्षित रखता और उसके बाद उसके गंतव्य दिल्ली छोड़कर कर आता.
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इससे पहले भी कई बार उसने नवीद को यहाँ वहाँ जाने में मदद की थी. फिलहाल मामले की पूरी जांच एनआईए के नेतृत्व में होगी उसके लिए एक आईजी स्तर की टीम भी गठित की जाएगी. देश की सबसे बड़ी पार्टी फिर यहाँ अपनी रोटी सेंकने पहुँच गयी, उसने सीधे एनआईए की निष्पक्षता पर ही सवाल उठा दिया.
क्या सच सामने आएगा या अपना मतलब साध लिया जायेगा...
अभी भी ऐसा बहुत कुछ है जो जनता के मन में खटक रहा होगा.. वो ये है कि जब आतंकियों को दिख गया था कि आगे पुलिस है तो उन्होंने भागने की कोशिश क्यों नहीं की? आमतौर पर आतंकवादी खुद को बचाने के लिए हमला करके निकल जाते हैं जबकि इस बार खतरनाक हथियार से लैश होने के बावजूद उन्होंने ऐसा नहीं किया!
दूसरा, कि लगातार इतनी शिकायतों के बाद इस डीएसपी का कोई बाल बांका नहीं कर पाया लेकिन इस बार कौनसा ऐसा कारण रहा होगा जो इस अधिकारी का खेल खत्म कर दिया गया? क्या अब उसकी ज़रूरत खत्म हो चुकी, या पुलिस को लगा कि पानी सर से ऊपर जा रहा है?
तीसरा और सबसे अहम सवाल ये है कि क्या डीएसपी बागी हो चुका था, उसने दूसरा आका चुन लिया था, या उसकी मदद से कुछ ऐसा होने जा रहा था जो उसके आकाओं को दिक्कत में डाल देती?
फिलहाल आईजी विजय कुमार ने बहुत कुछ कहा है, लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये कि इसके साथ भी उग्रवादियों जैसा व्यवहार किया जाएगा और जैसे ही आगे कुछ मिलता है वो जनता को खबर कर देंगे.
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