
देश कोरोना से जंग लड़ रहा है और दिल्ली पुलिस दलविशेष के राजनैतिक पूर्वाग्रहों के कारण दुश्मन माने जा चुके लोगों के खिलाफ जंग को एक नए आयाम तक पहुँचा रही है। मीरान हैदर, सफूरा ज़रगार, गौहर गिलानी, मसरत जहाँ, उमर ख़ालिद, ख़ालिद सैफ़ी, साबु अंसारी आदि - ये वो नाम हैं जिन्हें एंटी-टेरर लॉ के के तहत या तो गिरफ्तार किया गया है या नामज़द।
गौहर गिलानी और मसरत जहाँ कश्मीरी जर्नलिस्ट्स हैं। उन पर UAPA का कारण उनके सोशल मीडिया पोस्ट्स हैं। बाकियों पर दिल्ली में दंगा भड़काने का आरोप है। इसके अलावा भी कई आरोप लगे हैं। एक बात समझने लायक है दिल्ली दंगों के आरोप में UAPA झेल रहे ये एक्टिविस्ट्स एंटी-सीएए आंदोलनों में मुख्य रूप से मुखर रहे। 14 दिसंबर से शुरू हुआ आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्वक रहा। देश में कई सारे रेप्लिका तैयार हुए। पूरा देश इन आंदोलनों के रंग में रंग गया।
कैसे हुई थी हिंसा की शुरुआत?
हिंसा करने वालों को कपड़ों से पहचाना जा सकता है। 15 दिसंबर को प्रधानमंत्री झारखंड के चुनावी सभा में ऐसा बोलते हैं और उसी दिन शाम को जामिया मिलिया इस्लामिया यूनीवर्सिटी में घुसकर पुलिस स्टूडेंट्स के साथ हिंसा करती है। इसके बाद CAA के खिलाफ चल रहे आंदोलन को मुस्लिमों का आंदोलन के रूप में पेट करने की कोशिश होती है। गोदी मीडिया से लेकर बीजेपी के कई नेता इस काम में लग जाते हैं। मुसलमानों को एक दुश्मन के रूप में प्रोजेक्ट किया जाने लगा। और ऐसा लगता है कि दिल्ली पुलिस आज भी उसी प्रोजेक्शन पर काम कर रही है।
हिंसा किसने की?
27 जनवरी - बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर की एक सभा में उनके सामने देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को का नारा लगा। इस भाषण के बाद 30 जनवरी को एक रामभक्त गोपाल ने जामिया में फायरिंग की। 1 फरवरी को हिंदू राष्ट्र ज़िंदाबाद कहते हुए एक लड़के ने शाहीन बाग में फायरिंग की।
क्या उमर खालिद या अन्य आंदोलनकारियों ने भी हिंसक बातें कहीं?
आंदोलनकारियों की तरफ से तब भी कोई हिंसा नहीं हुई। उमर ख़ालिद समेत तमाम लोग जो मुखर रहे, उन्होंने अहिंसा और गाँधी के सिद्धांतों का जिक्र किया बार-बार। अमरावती में दिए गए जिस भाषण पर विवाद गहराया है, उसमें उमर कहते हैं- कि अगर वो नफरत फैलाएंगे तो हम उसका जवाब प्यार से देंगे। अगर वो डंडा चलाएंगे तो हम तिरंगा उठाकर लहराएंगे। अगर वो गोली चलाएंगे तो हम संविधान को हाथ में लेकर अपने आप को बुलंद करेंगे।
कपिल मिश्रा ने क्या किया?
फिर आती है 23 फरवरी। कपिल मिश्रा पुलिस के सामने धमकी देते हैं कि “ट्रंप के जाने तक आप जाफराबाद और चांदबाग खाली करवा दें। उसके बाद हम आपकी भी नहीं सुनेंगे। हम लौट कर आएंगे।” ठीक उसी दिन से हिंसा शुरू हो जाती है। शुरुआत जाफराबाद से ही होती है, जिसका जिक्र बीजेपी नेता कपिल मिश्रा अपनी धमकी में करते हैं।
तीन दिनों तक दिल्ली भयानक हिंसा से जूझती रही। दिल्ली हिंसाओं में 53 लोगों की मौत हुई। 36 मुसलमान मारे गए। सैंकड़ों विस्थापित हुए। पीड़ितों के मुताबिक पुलिस पूरी हिंसा के दौरान या तो मूक रही या फिर हिंसा में सहभागी।
अब क्या हो रहा है?
दिल्ली हिंसा में स्पष्ट तौर पर जिन लोगों के बयानों की भूमिका रही, उनपर कोई कार्रवाई नहीं हो रही। कार्रवाई उनपर हो रही है जिन्होंने सांप्रदायिक नागरिकता संशोधन कानून का विरोध किया। कार्रवाई उनपर हो रही है जो अपने हर नारे में नफ़रत का जवाब मोहब्बत से देने की बात करते रहे। कार्रवाई उन स्टूडेंट्स पर हो रही है जो जामिया में हुई हिंसा का विरोध करते रहे।
सवाल ये है कि क्या ये सब RSS के तय एजेण्डे के तहत हो रहा है जिसके अनुसार वो 2025 तक देश को हिंदू-राष्ट्र बना देना चाहती है। या फिर सब इत्तेफ़ाक है? सवाल ये भी उठता है कि क्या संविधान में उल्लिखित अधिकारों की मांग करना और देश की आत्मा को बचाए रखने की कोशिश करना भी देशद्रोह हो गया है?
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