
हरियाणा के बल्लभगढ़ में परीक्षा देकर लौट रही निकिता तोमर की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्या का आरोपी तौसिफ और उसका दोस्त रेहान है। ये पूरी घटना पास लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई। सरकार के फेल सिस्टम की वजह से ऐसी घटनाएं निरंतर सामने आ रही है। लेकिन इस घटना की चर्चा कुछ ज्यादा ही है, क्योंकि इसमें आरोपी मुसलमान है और मृत छात्रा हिन्दू। टीवी मीडिया का सबसे परफेक्ट विषय ही हिन्दू-मुस्लिम है। इसलिए इस घटना को हाथो-हाथ लपक लिया और पूरी घटना को हिन्दू-बनाम मुस्लिम बना दिया।
जी न्यूज, रिपब्लिक टीवी, इंडिया न्यूज जैसे चैनलों ने पूरे मामले को मिसलीड करते हुए इस्लामिक कट्टरता से जोड़कर मुसलमानों को टारगेट कर लिया। हेडिंग बनाया- इस्लामिक जिहाद का शिकार हो रही बेटियां, कब तक शिकार होती रहेंगी हिन्दू बेटियां, हिन्दू बेटियों की हत्या के पीछे इस्लाम क्यों पड़ा, ऐसी तमाम हेडिंग जो सीधे तौर पर उकसाती नजर आ रही हैं। हैदराबाद में प्रियंका रेड्डी गैंगरेप में भी ऐसा ही हुआ था, चार आरोपियों में एक मुस्लिम को टारगेट किया गया, पुलिस पर दबाव बढ़ा और उसने एनकाउंटर कर दिया। अदालत तक मामला पहुंचा ही नहीं।
निकिता मर्डर केस में एक चीज और भी गौर करने वाली है। यहां हत्यारे के समर्थन में कोई पंचायत नहीं की गई। कोई दल हत्यारे के समर्थन में रैली नहीं निकालने लगा। हत्यारे ने मजहबी नारा लगाते हुए हत्या को नहीं अंजाम दिया। किसी मुल्ला-मौलवी ने हत्यारे के समर्थन में बयान जारी नहीं किया। लेकिन हाथरस गैंगरेप और कठुआ में बच्ची के साथ रेप में ये सब कुछ हुआ था। हाथरस में सवर्ण परिषद ने पंचायत की, करणी सेना ने रैली की, भाजपा नेताओं ने बचाव में बयान जारी किया। किसी घटना को भी हिन्दू-मुस्लिम के एंगल से देखने का जो चश्मा सरकार ने पहनाया है वह जनता की आंखो में जाकर चिपक गया है, जिसे उतारना नामुमकिन सा हो गया है।
कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखने की जिम्मेदारी मनोहर लाल खट्टर सरकार की है, लेकिन वह न सिर्फ फेल रही बल्कि बड़ी लापरवाही सामने आई है। दो साल पहले निकिता के परिजनों ने आरोपी के खिलाफ केस दर्ज करवाया था लेकिन किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं की गई। प्रशासन का हाथ अपनी पीठ पर रखा देखकर तौसिफ ने सरेराह निकिता को गोली मार दी। प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज घटना को लेकर कितने गंभीर है वो उनके बयान से नजर आता है, विज ने कहा, पुलिस किसी को पर्सनल सुरक्षा नहीं दे सकती, पेट्रोलिंग करती है। आप सोचिए जिसने चुनाव के वक्त सुरक्षा देने का वादा किया वह चुनाव जीतते ही कैसे बदल गया।
अब बात इस घटना के दूसरे एंगल यानी लव जिहाद पर, जिस किसी सांप्रदायिक दिमाग वाले व्यक्ति ने इस शब्द का इजाद किया वह निश्चित तौर पर प्रेम विरोधी व अंतरधार्मिक विवाह विरोधी रहा होगा। मुस्लिम विरोध तो उसकी रग-रग में बसा होगा। तभी उसने सोचा कि प्रेम का इस्तेमाल करके भी कोई जेहाद किया जा सकता है। इस शब्द का इतना प्रचार किया जा चुका है कि जिसे कुछ भी नहीं आता वह भी लव जेहाद की अपनी एक अलग परिभाषा दिमाग में बना चुका है। ध्यान से देखेंगे तो पाएगे कि देश की सामाजिक समरसता में बहुत सारी कुरुपताएं भरी पड़ी हैं।
अंतरधार्मिक विवाहों को इजाजत न देने का अभ्यास और उनके लव जेहाद खोजने की प्रवृत्ति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनो उस बंद समाज की निशानियां है जहां कट्टरता इंसान के दिमाग को नियंत्रित-निर्देशित करती है। अब्दुल, आमिर जैसे नाम का कोई लड़का प्रिया, प्रीति जैसी लड़की से प्यार कर ले तो पूरे समाज का फोकस लव जेहाद पर चला जाता है। पड़ोस में भले किसी को दहेज के खातिर जला दिया जाए, हर दिन पीटा जाए उससे इस समाज को फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि नफरत की खेती करने वालों ने अपनी उपज लोगों के दिमाग में डाल दी है।
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