अर्नब गोस्वामी पत्रकार के भेष में सरकारी दलाल बना और भारतीय शहीदों की शहादत पर भी जश्न मनाने से नहीं चूका

अर्नब गोस्वामी को लेकर लोगों के भीतर जो थोड़ी बहुत इज्जत बची थी वह भी वाट्सऐप चैट लीक मामले के बाद खत्म हो गई। ऐसा हम नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर उन लोगों के कमेंट बता रहे हैं जो पिछले करीब एक साल से अर्नब बनाम कौन पूछ रहे थे। लेकिन कुछ सवाल आज भी पूछे जाने बाकी हैं, पहला ये कि इतने बड़े खुलासे के बाद भी मीडिया में चुप्पी क्यों है? आखिर अर्नब से मीडिया कितना डरता है? क्या यहां भी सरकार के साथ अर्नब का गठजोड़ बाकी के संस्थानों को बोलने से मना करता है? क्या उनके भीतर ऐसी क्षमता नहीं कि वह खुलकर अर्नब के खिलाफ बोल सकें?
पार्थो दास गुप्ता के साथ हुई बातचीत का जो वाट्सऐप चैट वायरल हुआ उसमें अर्नब एक जगह इंडिया टीवी के वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा व टाइम्स नाऊ की प्रमुख पत्रकार नविका कुमार को कचरा बोलता है, फिर भी दोनो पत्रकारों ने किसी तरह से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। रजत शर्मा ने 16 जनवरी को ट्वीट करते हुए लिखा- 'चुप हुँ यूँ नहीं कि अल्फ़ाज़ कम हैं, चुप हुँ यूँ कि अभी लिहाज़ बाक़ी है' इस ट्वीट को अर्नब के मामले से जोड़कर देखा जा रहा है, ऐसा कहा जा रहा कि रजत शर्मा इशारों इशारों में अर्णब से गुस्सा होने की बात कह रहे हैं। हालांकि नविका कुमार ने किसी तरह की कोई बात नहीं कही है।
असल में सवाल ये है कि स्टूडियो में बैठकर देशभक्ति और देशद्रोही का सर्टिफिकेट बांटने वाले अर्नब को इस खुलासे के बाद आतंकी नहीं कहा जाना चाहिए? आखिर पुलवामा में शहीद हुए जवानों पर कौन खुश होकर कहता है - "This Attack We Won Like Crazy," जब पूरा देश शहीदों की मौत से गम में था तब अर्नब उस हमले से टीआरपी कैश कर रहा था, चैट में दावा कर रहा था कि भाजपा इस हमले को कैश करने में कोई कसर नहनीं छोड़ेगी। ये सोचने वाली बात है कि क्या इस देश में जवानों की जान टीआरपी और वोट से भी सस्ती है?
अर्नब गोस्वामी चैट में सूचना प्रसारण मंत्री को हटवाने की बात करता है, वह पार्थोदास को लिखते हैं कि उन्हें सूचना प्रसारण मंत्रालय छोड़ देना चाहिए, मैने पीएमओ से मुलाकात की है। आप सोचिए एक कथित मजबूत सरकार जो खुद को ईमानदार भी बताती है उसके भीतर एक पत्रकार अपने निजी फायदे के लिए मंत्री तक बदलवा रहा था। अर्नब बार्क की गतिविधियों के बारे में पीएमओ को खबर पहुंचाता रहता था, वह इस चक्कर में भी था कि कैसे दूरदर्शन के जरिए रिपब्लिक भारत को लाभ पहुंचाया जाए।
अर्नब मंत्रियों को बेकाम का बताता है, पत्रकारों को कचरा बोलता है, पुलवामा हमले पर जश्न मनाता है, टीआरपी कैश करने की बात करता है लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से किसी भी तरह की प्रतिक्रिया नहीं आई है। नीरा राडिया टेप कांड के वक्त याद करिए कितना हंगामा मचा था जबकि वह इससे गंभीर मामला भी नहीं था लेकिन यहां सत्ता पक्ष के साथ साथ विपक्ष की भी चुप्पी सवाल खड़े करती है। भाजपा का तो समझ आता है कि उन्होंने अपनी इमेज चमकाने के लिए चैनलों का इस्तेमाल किया, विपक्ष का नहीं समझ आता, आखिर वह चुप क्यों है?
अर्नब के पास इतनी ताकत कहां से आई कि वह देश के सम्मानित मंत्रियों व पत्रकारों को हटाने तक का दावा करने लगा, आखिर उसका भारत सरकार से क्या रिश्ता है जो वह मंत्री पदों के निर्धारण तक ममें भूमिका निभाने लगा। देश की जनता को ये बात पता होनी चाहिए कि जो रोज शाम सात बजे किसी को भी देशद्रोही बता देता था असल में वही सबसे बड़ा दगाबाज है। उसे बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक की भी जानकारी रहती है उसे पीएमओ के भीतर कामकाज की भी क्योंकि वह इस कथित ईमानदार सरकार में मजबूत पावर ब्रोकर है, पावर ब्रोकर समझते हैं? सत्ता का दलाल। जिसे एक पार्टी के समर्थक सबसे बड़ा देशभक्त पत्रकार समझते हैं।
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