
आज से करीब 10 साल पहले तक सपा समर्थकों में ओबीसी वर्ग का एक बड़ा हिस्सा होता था लेकिन धीरे धीरे ये वर्ग छिटकर भाजपा के पाले में चला गया। भाजपा जितनी मजबूत हुई सपा उतना कमजोर होती चली गई। आज यादव लॉबी को छोड़ दे तो सपा के साथ खड़ा होने वाला वर्ग बड़ी संख्या में नजर नहीं आता। सपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल आजम खान को योगी सरकार ने तमाम झूठे आरोपो में जेल भिजवा दिया, ऐसे में अखिलेश यादव को सड़क पर उतरना था लेकिन वह मुखरता से नहीं उतरे।
अखिलेश के भीतर ये डर था कि कहीं जनता में ये मैसेज न चला जाए कि सपा मुस्लिमों से सहानुभूति रखती है। सीएए प्रोटेस्ट के दौरान भी अखिलेश के दिमाग में यही चल रहा था, उस वक्त आजमगढ़ में बड़ी संख्या में मुसलमानों को सीएए प्रोटेस्ट में तोड़फोड़ करने के आरोप में कुर्की हुई, जेल भेजा गया लेकिन अखिलेश चुप्पी साधे रहे। ध्यान रहे यहां की जनता ने अखिलेश को अपना वोट देकर सांसद चुना है। यही कारण है कि मुस्लिम भी आज सपा पर अंधा भरोसा करने से बचते नजर आ रहे हैं।
अब वर्तमान देखिए। किसान आंदोलन हो रहा है, ये बात सपा के हर कार्यकर्ता को पता है कि कानून किसानों के खिलाफ है। लेकिन क्या अखिलेश अपने एसी रूम से बाहर आए, सपा का सामाजिक आधार ही किसान व किसानी पर आश्रित मजदूर है लेकिन वैचारिक मतिभ्रम के कारण अखिलेश खुलकर फैसला लेने में फेल रहे। जब नेतृत्व कमजोर होता है तो कार्यकर्ताओं पर इसका सीधा असर पड़ता है। आज सिवाय मोदी को गाली देने के अलावा सपा कार्यकर्ता के पास कुछ नहीं बचा है।
1909 में यूएन मुखर्जी ने 'हिन्दू; डाईंग रेस' नाम की कितााब लिखी, किताब की हकीकत कुछ और ही थी लेकिन आरएसएस व भाजपा ने उसके तमाम एडिशन छपवाकर उसी झूठ का प्रचार किया। लेकिन सपा अपने ही सामाजिक आधार का प्रचार करने में पूरी तरह से फेल रही। ट्वीटर पर खानापूर्ति स्वरूप एक ट्वीट कर देने से कुछ नहीं होने वाला है। वैक्सीन भाजपा की नहीं है ये बात हर कोई जानता है लेकिन अखिलेश यादव इसे भाजपा की वैक्सीन बताकर खुद ही वाकओवर दे रहे हैं। हमेशा मंदिर की खिलाफत की और अब मंदिर में जा रहे हैं।
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मेरे ही गांव में हर जाति का व्यक्ति मुलायम सिंह का प्रशंसक हुआ करता था, वोट देकर सरकार बनाता था। अखिलेश की छवि मुलायम सिंह से बेहतर है। मुलायम सिंह का अयोध्या में गोलीकांड लोग नहीं भूले हैं। वहीं अखिलेश विकास को तवज्जो देते नजर आते हैं, सीएम रहते हुए अखिलेश यादव ने डायल 100 सेवा शुरु की, जो यूपी पुलिस खटारा जीप से चलती थी उसे इनोवा दिया। प्रयागराज में ही इलाहाबाद स्टेट यूनिवर्सिटी बनाई। यूपीएसएसएससी बनाया, हर साल लेखपाल, जूनियर असिस्टेंट समेत तमाम पदो पर धुंधाधार भर्ती की।
योगी आदित्यनाथ ने क्या किया, इन्होंने डायल 100 का नाम बदलकर डायल 112 कर दिया. यूपीएसएसएससी को जिंदा मार दिया, इलाहाबाद में जो स्टेट यूनिवर्सिटी बनाई उसका नाम बदलकर रज्जू भैया विश्वविद्यालय कर दिया. प्रदेश घूम घूमकर जिलो का नाम बदला। जितनी भी वैकेंसी निकाली सभी जाकर कोर्ट में फंस गई। होमगार्डों को घर बैठा दिया। जो अखिलेश यादव ने किया उसको पेंट करके वहां अपना बोर्ड टांग दिया। कुछ भी ऐसा नहीं किया जिस पर भाजपा को गर्व हो।
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सपा अगर आज जमीन पर उतरे तो 2021 में सरकार बनाने की सबसे प्रबल दावेदार होगी। लेकिन इसके लिए अखिलेश को जमीन पर आना होगा। मैंने शुरु में कहा है कि यादव इस पार्टी के अभी सबसे बड़े समर्थक हैं लेकिन उसमें भी तमाम लोग अखिलेश की सुसुप्ता अवस्था देखकर खुद को पार्टी का कार्यकर्ता बोलने से भी कतराने लगे हैं। प्रदेश में बसपा खत्म हो चुकी है, कांग्रेस अपनी आखिरी सांसे गिन रही है, छोटी पार्टियां हमेशा से 2-4 सीटों के लिए मरती रही हैं, ऐसे में सपा के पास बढ़िया मौका है। लेकिन....लेकिन सपा का वर्तमान जहां है वहां से उसका भविष्य सिर्फ अंधकारमय दिखाई देता है।
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अखिलेश के भीतर ये डर था कि कहीं जनता में ये मैसेज न चला जाए कि सपा मुस्लिमों से सहानुभूति रखती है। सीएए प्रोटेस्ट के दौरान भी अखिलेश के दिमाग में यही चल रहा था, उस वक्त आजमगढ़ में बड़ी संख्या में मुसलमानों को सीएए प्रोटेस्ट में तोड़फोड़ करने के आरोप में कुर्की हुई, जेल भेजा गया लेकिन अखिलेश चुप्पी साधे रहे। ध्यान रहे यहां की जनता ने अखिलेश को अपना वोट देकर सांसद चुना है। यही कारण है कि मुस्लिम भी आज सपा पर अंधा भरोसा करने से बचते नजर आ रहे हैं।
अब वर्तमान देखिए। किसान आंदोलन हो रहा है, ये बात सपा के हर कार्यकर्ता को पता है कि कानून किसानों के खिलाफ है। लेकिन क्या अखिलेश अपने एसी रूम से बाहर आए, सपा का सामाजिक आधार ही किसान व किसानी पर आश्रित मजदूर है लेकिन वैचारिक मतिभ्रम के कारण अखिलेश खुलकर फैसला लेने में फेल रहे। जब नेतृत्व कमजोर होता है तो कार्यकर्ताओं पर इसका सीधा असर पड़ता है। आज सिवाय मोदी को गाली देने के अलावा सपा कार्यकर्ता के पास कुछ नहीं बचा है।
1909 में यूएन मुखर्जी ने 'हिन्दू; डाईंग रेस' नाम की कितााब लिखी, किताब की हकीकत कुछ और ही थी लेकिन आरएसएस व भाजपा ने उसके तमाम एडिशन छपवाकर उसी झूठ का प्रचार किया। लेकिन सपा अपने ही सामाजिक आधार का प्रचार करने में पूरी तरह से फेल रही। ट्वीटर पर खानापूर्ति स्वरूप एक ट्वीट कर देने से कुछ नहीं होने वाला है। वैक्सीन भाजपा की नहीं है ये बात हर कोई जानता है लेकिन अखिलेश यादव इसे भाजपा की वैक्सीन बताकर खुद ही वाकओवर दे रहे हैं। हमेशा मंदिर की खिलाफत की और अब मंदिर में जा रहे हैं।
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योगी आदित्यनाथ ने क्या किया, इन्होंने डायल 100 का नाम बदलकर डायल 112 कर दिया. यूपीएसएसएससी को जिंदा मार दिया, इलाहाबाद में जो स्टेट यूनिवर्सिटी बनाई उसका नाम बदलकर रज्जू भैया विश्वविद्यालय कर दिया. प्रदेश घूम घूमकर जिलो का नाम बदला। जितनी भी वैकेंसी निकाली सभी जाकर कोर्ट में फंस गई। होमगार्डों को घर बैठा दिया। जो अखिलेश यादव ने किया उसको पेंट करके वहां अपना बोर्ड टांग दिया। कुछ भी ऐसा नहीं किया जिस पर भाजपा को गर्व हो।
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source: https://www.molitics.in/article/765/uttar-pradesh-politics-smajwadi-party-chief-akhilesh-yadav-situation
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