जिन मुसलमानों ने देश की आजादी में सबसे आगे कुर्बानी दी उन्हें 'दोयम दर्जे' का नागरिक बनाने पर क्यों तुली है भाजपा?

दोस्ती व भाईचारा के बीच कोई दीवार ना लाएंगे
तुम राम नाम का जाप करों, हम दरगाह में चादर चढ़ाएंगे...
क्या ऊपर लिखी छोटी सी दो पंक्तियाँ गलत हैं? क्या ये दो पंक्तियाँ हमें धर्म परिवर्तन करने को कह रही? क्या ये दो पंक्तियाँ एक सही कदम नहीं?
नए भारत में मुसलमानों की स्थिति बदल रही है, देश में मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने के लिए हमेशा मौक़े की ताक पर रहने वाले कुछ तत्व उन्हें दबाने में लगे रहते हैं, बहुत ही सुनियोजित ढंग से RSS के अलावा सभी आवाज़ों को दबा दिया गया है।
इतिहास (भारत की आज़ादी से शुरुआत करते हैं)
युसूफ मेहरली ही वो शख्स थे जिन्होंने 'Quit India' यानी भारत छोड़ो का नारा दिया था, ये वही नारा था जिसे गांधीजी ने 1942 में भारत की आजादी के लिए छेड़े गए सबसे बड़े आंदोलन के लिए अपनाया था।
मुसलमानों ने भारत की आज़ादी में बहुत ही क्रांतिकारी भूमिका निभाई थी, असहयोग आंदोलन की भी शुरुआत उन्होंने ही की थी, बैरिस्टर आसिफ अली ने भगत सिंह का केस तब लड़ा था जब कोई भी भगत सिंह का साथ देने को तैयार नहीं था, हसरत मोहानी वो शख्स थे जिन्होंने 'इंक़लाब जिंदाबाद' का नारा दिया था। जय हिन्द का नारा जिसका बढ़ चढ़कर भारतीय सेना आज भी इस्तेमाल करती है उसे आबिद हसन सफ़रानी ने दिया था। सुरैया तैयबजी वो महिला थी जिन्होंने तिरंगा को डिजाईन किया था। अगर मुसलामानों ने भिवा रामजी आंबेडकर का साथ नहीं दिया होता तो उन्हे संविधान लिखने का मौका नहीं मिला होता, कल का लिखा सारे जहाँ से अच्छा आज भी लोगों के दिलों में जिन्दा है, ऐसे करोड़ों मुसलमान हैं जिन्होंने हिन्दुओं के साथ मिल कर भारत की आज़ादी के लिए अपना सब कुछ खो दिया लेकिन आज उन्हें पहचानता कोई नहीं।
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अगर आज के टीवी, अखबार और नफ़रत फैलाने वाले तत्वों को खंगाला जाए, तो आसानी से हिसाब लगाया जा सकता है कि कितनी नफरत आज फैलाई जा रही। टीवी डिबेट में बैठे कुछ हिन्दू-मुस्लिम प्रवक्ता की जो सोच होती है वो आम जनता अपनी सोच बना लेती है। यह समझना बहुत जरूरी है कि जनतंत्र के लिए धर्म को राजनीति से अलग करना जरूरी है।
तब्लीग़ी जमात
कोरोना महामारी के वक्त भारत के अंदर मुसलमानों का सड़क पर निकलना मुश्किल कर दिया गया, कोरोना काल में हुए तब्लीग़ी जमात के आयोजन का संक्रमण फैलने का कारण बता दिया, कभी कोरोना जिहाद तो कभी मानव बम कहा गया। गोदी मीडिया ने कुल मिला के मुसलमानों को आतंकबादी बता दिया था। सोशल मीडिया के ज़रिए जमकर दुष्प्रचार किया गया था कि जमात के लोगों की वजह से ही कोरोना फैल रहा, पूरे जोर-शोर से हल्ला किया गया कि मुसलिम समुदाय ही ज़िम्मेदार है। ये काम ना केवल गोदी मीडिया का था बल्कि केंद्र सरकार के मंत्री, अफ़सरों, BJP के तमाम बड़े नेता भी इसे हवा दे रहे थे। पुलिस लॉकडाउन के दौरान सड़कों पर निकल कर नाम पूछ कर पिटाई कर रही थी, जमात के लोगों को बदनाम करने के लिए डॉक्टरों पर थूकने वाले फर्जी वीडियो और ख़बरें भी खूब वायरल हुई। गोदी मीडिया ने इसे थूक वाला जिहाद कहा था।
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इतने परपंच के बाद कोर्ट ने भी सरकारों की खिंचाई की थी, मीडिया को भी खूब खरी-खरी सुनाई थी जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपील की थी कि इसे किसी समुदाय विशेष से ना जोड़े।
बॉम्बे और पटना हाई कोर्ट के अलावा हैदराबाद और दिल्ली की स्थानीय अदालतों ने भी तब्लीग़ी जमात के सदस्यों के ख़िलाफ़ तमाम मुक़दमों को खारिज कर गिरफ्तार लोगों की रिहाई के आदेश जारी किए।
योगी जी का लव-जिहाद कानून
जब से भगवाधारी योगी यूपी के मुख्यमंत्री बने तब से मुसलमानों के ज़ख्म बढ़ गए हैं, आशंका जताई जा रही है कि ये कानून धर्म विशेष के लोगों को टारगेट करके प्रताड़ित कर रहा, ऐसे कई मामले सामने आ रहे जहां अदालत में पुलिस को फजीहत झेलनी पड़ रही है। बजरंग दल के कार्यकर्ता उन्हें भी जबरन पकड़ रहे जो अपनी जिंदगी में खुश हैं, कोर्ट ने साफ साफ कहा है कि सबको अपना पार्टनर चुनने का हक है। कहीं मुस्लिम युवकों को जबरन उस मामलों में फसाया जा रहा जो उन्होंने किया ही नहीं, बरेली पुलिस ने जांच के बाद बताया कि तीन आरोपी मुस्लिम युवकों को गलत तरीके से फंसाया गया था कि को महिला पर जबरन धर्म परिवर्तन करवा रहे। फरीदपुर तहसील के रहने वाले अबरार के खिलाफ दर्ज हुआ लव जिहाद का मुकदमा भी जांच में झूठा निकला है। इसी तरह मुजफ्फरनगर का लव जिहाद का मामला भी झूठा पाया गया है।
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उत्तर प्रदेश महिला कांग्रेस की उपाध्यक्ष उरूशा राणा का कहना है कि ये कानून कभी साफ नीयत के साथ लागू ही नहीं किया गया, योगी जी गलतफहमी को बढ़ा रहे, मकसद ही समाज को बांटना और दिलो में भेद डालना है।
भगवा संगठन
सरकार का एकपक्षीय चेहरा और खतरनाक है, सरकार के नीचे काम कर रहे हिंदूवादी संगठन हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं, ये लोग भगवा संगठन की आड़ में गुंडागर्दी करते हैं, उदाहरण- उज्जैन में हिंदूवादी संगठनों की बाइक रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद मध्य प्रदेश पुलिस का एकपक्षीय चेहरा सामने आया, जहां सब ने मिल कर पथराव करने वाले हिंदू का घर छोड़कर पड़ोस के मुसलमान का घर तोड़ दिया। महाकाल की नगरी में हुई इस एकपक्षीय कार्रवाई ने सब का ध्यान खींचा, कई सवाल भी उठाए गए।
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देखा जाए तो जो स्थिति मुसलामानों की अब बन गई है वो शायद कभी नहीं थी, सच्चर समिति जो भारत में मुस्लिम समुदाय के आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक स्तर की रिपोर्ट तैयार करती है उसके अनुसार भी मुसलमानों को आर्थिक असमानता, सामाजिक असुरक्षा और अलगाव झेलना पड़ रहा।
आज भारत में मुसलमानों को मज़हब के नाम पर भड़का पर मात्र वोट बैंक की तरह ही देखा जाता है, अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा रोज़मर्रा की बात बन गई है, समय आ चुका है कि जाति-धर्म की ये दरारें मिटाई जाएं, मुसलमानों को बराबरी और इंसाफ़ देने का काम किया जाए ताकि एकता की तस्वीर मिसाल बने। सरकार को समझना चाहिए ही हमेशा तानाशाही नहीं चलेगी नफ़रत से लोगों की खीझ बढ़ रही है एक दिन वो भी आवाज़ उठाएगा, हमें जरूरत है कि अपने ज़हन में बदलाव लाए। ये मुसलमानों के लिए जरूरी है कि वे विकास की मुख्य धारा से खुद को जोड़ सकें।
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