
इस समय दो तरह के चुनाव चल रहे हैं। पहली तरह वाले में पांच राज्यों के भीतर विधानसभा चुनाव, दूसरी तरह वाले में यूपी में पंचायत चुनाव। दोनो चुनाव में समानता ये है कि बड़ी संख्या में जानवर चुनाव मैदान में उतर आए हैं। जानवर कहने से बुरा मत मानिएगा। असल में जब कोई किसी को शेर कहता है तो उसका सीना फूलकर 56 इंची हो जाता है लेकिन जैसे ही कोई जानवर कह दे तो बुरा मान जाता है। ऐसे थोड़े होता है भइया जी।
जानवरों के राजनीति में प्रवेश करने के बाद पश्चिम बंगाल में मिथुन चक्रवर्ती कोबरा के रूप में भाजपा में शामिल हुए हैं। मिथुन ने पीएम के सामने ही मंच पर कहा था कि उन्हें नकली सांप न समझें, वह कोबरा हैं, जिसे डस लेंगे वह इंसान फोटो में बदल जाएगा। हमें मिथुन की बात पर शक हुआ तो उनकी तमाम फिल्में देखी। एक फिल्म सीन मिला। मिथुन के भीतर सच में एक कोबरा है। पैरों के नीचे हाथ ले जाकर हाथों से फन बनाना और फिर उल्टा होकर उड़ना इस बात का प्रूफ है कि मिथुन पहले से ही कोबरा थे। जिस तरह से उन्होंने गुंडे की आंख में अपने फन रूपी हाथ से डसा वह इस बात का संकेत है कि विपक्ष को उनसे थोड़ा दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
भाजपा में शामिल होने के बाद मिथुुन ने कहा- वह जनसेवा करने के लिए पार्टी में शामिल हुए हैं। मिथुन जी लंबे समय से जनसेवा करना चाहते थे। किया भी। उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत वामपंथी पार्टियों के जरिए हुई। हालांकि इस दौरान वह किसी पद पर नहीं रहे लेकिन सरकार से बेहद करीबी रहे। बंगाल की जनता का मूड बदला और टीएमसी सत्ता में आई तो मिथुन जी का भी ह्रदय परिवर्तन हुआ और वह टीएमसी में आ गए। ध्यान रहे टीएमसी भी उन्होंने जनसेवा के लिए ही ज्वाइन किया।
ममता बनर्जी ने दरियादिली दिखाते हुए उन्हें 2014 में उन्हें राज्यसभा भेजा। जनसेवा का ख्वाब लेकर सांसद बने मिथुन उर्फ कोबरा जी ढाई साल में सिर्फ तीन बार राज्यसभा गए। इस दौरान एक भी सवाल नहीं उठाया। जनसेवा के इस तरीके को देखने के बाद मुझे इनकी 'ओह माय गॉड फिल्म' याद आ गयी। इसमें भी मिथुन जी को सबकुछ पता था। उनका ये रोल उनकी राजनीति से ही प्रेरित प्रतीत होता है। 2016 में उनका नाम शारदा चिटफंड स्कीम घोटाले में नाम आया। ईडी ने कई घंटो तक पूछताछ की। उन्हे लगा टीएमसी में रहूंगा तो फंस जाऊंगा सो उन्होंने पार्टी और सांसदी से इस्तीफा देकर राजनीति से सन्यास की घोषणा कर दी। इस तरह से उनका जनसेवा से मन भर गया।
2018 में कोबरा जी के लड़के महाअक्षय उर्फ मिमोह पर रेप का आरोप लगा। उनकी पत्नी योगिता बाली पर पीड़िता का जबरन अबॉर्शन करवाने और धमकाने के आरोप में दिल्ली के बेगमपुर में शिकायत दर्ज हुई। इससे मिथुन की छवि पर असर पड़ा। और दाग धुुलने की जरूरत आन पड़ी। किसी भी तरह का कितना भी मजबूत दाग हो वह भाजपा में जाते ही धुल जाता है। ऐसे में मिथुन जी के भीतर एकबार फिर से जनसेवा की खुमारी चढ़ी और उन्होंने भाजपा ज्वाइन कर ली।
इस तरह से मिथुन जी ने राजनीति का एक पूरा चक्कर लगा लिया। कट्टर वामपंथी होने से लेकर कांग्रेस से लगाव व टीएमसी में झुकाव के बाद वह अब कट्टर राष्ट्रवादी बन चुके हैं। सियासी जानकार कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में मिथुन चक्रवर्ती के रूप में मनोज तिवारी मिला है। दिल्ली चुनाव में भाजपा का जो हाल हुआ था वही बंगाल में भी होगा। हालांकि मैं इन सबसे इत्तेफाक नहीं रखता। मैं बस उस जनसेवक की चालाकियां देख रहा जिसे राजनीति में रुचि तो खूब है लेकिन उनकी राजनीति में जनता का हिस्सा गायब है। मतलब जनता के मुद्दे नहीं है। वह सच में कोबरा है। जनता के मुद्दों को खत्म कर देना वाला कोबरा। आज के लिए बस इतना ही।
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