तंबू में शौच, बरामदे में खाना; CRPF जवानों की कहानी

महाराष्ट्र चुनावों की कहानी के शुरुआती अध्याय की इतिश्री लगभग हो चुकी है। झारखंड में शुरुआत होने वाली है। चुनावों के बेहतर संचालन के लिए सीआरपीएफ के जवानों को डिप्लॉय किया गया है। उसी सीआरपीएफ के जवान जिसको आजकल की राजनीति में खूब भुनाया जाता है।
आतंकवादियों और नक्सलियों से भी कम ध्यान सुरक्षाकर्मियों के मानवाधिकार पर
मुमकिन है झारखंड चुनावों में भी जवानों के नाम का ट्रंप कार्ड चले। लेकिन झारखंड में जवानों की वास्तविक हालत क्या है, ये जाना जा सकता है मुख्य चुनाव आयुक्त को सीआरपीएफ कमांडेंट के द्वारा भेजी गई एक शिकायत से। कमांडेंट राहुल सोलंकी ने लिखा कि जवानों के मानवाधिकार को आतंकवादियों के मानवाधिकारों से भी कम गंभीरता से लिया जाता है।
राहुल सोलंकी ने चिट्ठी में आगे लिखा कि चुनावी ड्यूटी पर जिन जवानों की तैनाती हुई उनके रहने और खाने पीने का इंतज़ाम बेहद बुरा है। वो लिखते हैं कि अधिकारियों द्वारा जवानों के प्रति ऐसा रवैया उनकी गरिमा के साथ खिलवाड़ है। शिकायत के बाबत सीआरपीएफ के एक प्रवक्ता ने कहा कि बहुत सी चीज़े दुरुस्त की जा चुकी हैं। लेकिन द क्विंट के मुताबिक प्रवक्ता के दावे झूठे हैं।
प्लास्टिक और बाँस के तंबुओं में शौच को मजबूर हैं जवान
चुनावी ड्यूटी पर तैनात जवानों को एक स्कूल में ठहराया गया है। स्कूल में 600 छात्र-छात्राएँ पढ़ते हैं। लेकिन पूरे स्कूल में दो शौचालय हैं। ख़ैर सामान्य पुलिस ने रिज़र्व पुलिस बल का सहयोग किया और काली पॉलीथीन और बाँस के सहारे घेराबंदी करके अस्थायी टॉयलेट्स बनाए। कमांडेंट सोलंकी का कहना है कि प्रदेश भर में सीआरपीएफ के 3000 जवान तैनात हैं। ज्यादातर जवान इसी तरह के शौचालय का प्रयोग कर रहे हैं।
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