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CAB: India on its way to becoming a Hindu Pakistan!

CAB: हिंदू पाकिस्तान बनने की राह पर भारत!
“ये तो सीधे-सीधे असम में वोटबैंक की राजनीति करने के लिए और पूरे देश में हिंदुओं का मसीहा बनने के लिए इस देश के संविधान के साथ खिलवाड़ है।” United Against Hate के द्वारा NRC और CAB के विरोध में आयोजित एक कार्यक्रम में योगेंद्र यादव ने आगे बोला कि “सरकार की तरफ से कहते हैं कि ये बिल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों को बचाने के लिए है। मैं कहता हूँ कि बिल्कुल कीजिए। बेशक इन देशों में अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय हुआ है लेकिन केवल हिंदुओं के साथ नहीं हुआ है। और लोगों के साथ भी अन्याय हुआ है।“
क्या है बिल में?
संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा में CAB (नागरिकता संशोधन विधेयक) पास हो गया है। इस विधेयक के जरिए 64 वर्ष पूर्व के नागरिकता एक्ट में संशोधन किया गया। एक्ट के अनुसार बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान से भारत आए हुए शरणार्थियों, जो ग़ैर मुस्लिम हैं को नागरिकता दी जाएगी। सरलीकरण के जरिए नागरिकता के लिए निश्चित 12 वर्ष की अवधि को घटाकर 6 वर्ष कर दिया गया है। इस बिल का असम में भारी विरोध हो रहा है। असम के लोग सड़कों पर हैं और राज्य में तनाव की स्थिति है।
क्या है पेंच?
सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि घुसपैठियों की पहचान और उनके खिलाफ कार्यवाही ज़रूरी है। लेकिन असम में पहले NRC और उसके बाद CAB ये साबित करता है कि सरकार का उद्देश्य केवल घुसपैठियों की पहचान और उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं बल्कि बहुसंख्यकों को ध्रुवीकृत करके सत्ता को सहेजे रखना है। एक्टिविस्ट उमर ख़ालिद कहते हैं कि “NRC की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई। 19 लाख लोग इस सूची में नहीं आ पाए। इनमें से ज्यादातर हिंदू थे। आँकड़े सरकार की अपेक्षा के अनुरूप नहीं होने की वजह से सरकार ने ऐलान किया कि असम में दोबारा NRC की सूची बनवाई जाएगी। इसके बाद CAB के जरिए सरकार खुलेतौर पर कह रही है कि जो मुसलमान नहीं हैं उनको नागरिकता दे दी जाएगी जबकि मुस्लिमों को घुसपैठिया क़रार दे दिया जाएगा, जो ख़तरनाक है।”
बिल की संवैधानिक वैधता
CAB की संवैधानिक वैधता भी सवालों के दायरे में है। संविधान का अनुच्छेद 14 कहता है कि राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समता से या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा.’ 1954 के केदारनाथ बजौरिया बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल के केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 राज्य को समूहों के वर्गीकरण से नहीं रोकता, बशर्ते वह वर्गीकरण - 
  • उचित हो
  • तर्कसंगत उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लक्षित हो
  • उसमें मनमानापन न हो।
CAB के जरिए जिस तर्कसंगत उद्देश्य पूर्ति का दावा अमित शाह कर रहे हैं, वह है - पड़ोसी देशों में जिन लोगों के साथ अन्याय हुआ है, अगर वो भारत में शरण चाहते हैं तो भारत उनको नागरिकता देगा। यह उद्देश्य भारत के मानवतावादी सिद्धांतों और विवेकानंद की शिक्षाओं से मेल खाता है लेकिन सरकार ने इस बिल में नागरिकता देने के लिए धर्म की शर्त रखी है। यह शर्त, इस तर्कसंगत उद्देश्य को सांप्रदायिक और राजनीति से प्रेरित बनाता है। जिसके कारण यह बिल तर्कसंगत उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लक्षित नहीं रह जाता।
टू नेशन थ्योरी का समर्थन कैसे कर रहा है बिल?
अमित शाह ने लोकसभा में बिल पेश करते हुए कहा कि इसकी ज़रूरत इसलिए पड़ी क्योंकि कांग्रेस ने धर्म आधारित बँटवारा करवाया था। लेकिन गृहमंत्री भूल गए कि जिस टू नेशन थ्योरी के अनुसार देश बँटा उसके हिमायती RSS विचारक सावरकर थे। स्वराज इंडिया के प्रवक्ता अनुपम ने बताया, ”सिंध की असेंबली पहली असेंबली थी, जिसमें पाकिस्तान बनाने का औपचारिक संकल्प पेश हुआ। इस असेंबली में हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग के गठबंधन की सरकार थी। मुस्लिम लीग के चीफ थे ज़िन्ना औऱ हिंदू महासभा के चीफ़ थे सावरकर।”
NRC और CAB के बाद क्या?
NRC और CAB के बाद क्या? अनुपम कहते हैं कि “चलिए मान लेते हैं कि जो लोग NRC की सूची में नहीं आ पाते, सरकार उन्हें डिटेंशन सेंटर में डाल देगी। इन सेंटर्स में भी लोगों पर खर्च तो आएगा ही। मान लेते हैं वो खर्च 1000 रुपये प्रति माह है। केवल असम में 19 लाख लोग NRC की सूची में नहीं आ पाए। इन आंकड़ो को पूरे देश पर लागू किया जाए तो क्या सरकार देश के संपूर्ण आर्थिक बजट को NRC पर खर्च कर देगी?” उमर ख़ालिद कहते हैं कि “क्या सरकार समाज के एक बड़े तबके को saddistic pleasure के लिए उत्पीड़ित करना चाहती है?”
गाँधी और अंबेडकर के सिद्धांतों के खिलाफ है बिल
ये भी एक विडंबना है कि जिस विचारधारा को मानते हुए बीजेपी राजनीति करती रही है, उस विचारधारा को स्वीकार्य बिल पेश करते हुए भी उसका नाम गृहमंत्री नहीं ले पाए। NRC और CAB का विरोध कर रहे लोगों ने इसका कारण बताते हुए कहा कि, पता अमित शाह को भी है कि अहिंसा और प्यार का सिद्धांत भारत की मिट्टी में घुली हुई है। योगेंद्र यादव कहते हैं कि ”देश को हिदू-मुस्लिम में बाँटने की जो कोशिश है, उसके खिलाफ इस देश की मिट्टी है, उसके खिलाफ इस देश का संविधान है, उसके खिलाफ महात्मा गाँधी की विरासत है।”
मौजूदा सरकार के नेतृत्व में महात्मा गाँधी की इस विरासत को तोड़ने के काम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर हो रहे हैं। विरोध कर रहे तारिक़ जमाल कहते हैं, “अनुच्छेद 370 को बिना किसी प्रासंगिक विमर्श के हटा देना, अप्रत्यक्ष तौर पर चुनावी राजनीति से मुस्लिमों का बहिष्कार, धर्म की आड़ में भीड़ द्वारा लोगों की हत्याओं पर सरकार की ख़ामोशी और देश के बहुसंख्यक समाज में अल्पसंख्यकों के खिलाफ पैदा किया जा रहा माहौल इन्हीं प्रयासों के तहत किए जा रहे हैं।” राजनैतिक/सामाजिक दलों के लोगों के द्वारा खुलेआम गाँधी के हत्यारे गोड्से का महिमामंडन और गाँधी के विरुद्ध टिप्पणियाँ इन्हीं प्रयासों के तहत हैं।
स्वराज इंडिया के अनुपम NRC और CAB को सामाजिक मुद्दों और पहलुओं से जोड़कर भी देखते हैं। वो कहते हैं, ”दिनोंदिन भुखमरी और गरीबी बढ़ रही है। बेरोज़गारी दर रोज़ नई ऊँचाई छू रही है। किसान परेशान हैं। इन असल मुद्दों को चर्चाओं से बाहर रखने के लिए सरकार CAB जैसा सांप्रदायिक कानून ला रही है। ये जानते हैं कि हिंदू औऱ मुस्लिमों में बढ़ता फ़ासला ही इनकी कुर्सी की ताकत को मजबूत करेगा।” आंदोलन में शामिल एक युवा कार्यकर्ता ने कहा कि बीजेपी सरकार की कार्यवाहियों को देखकर लगता है कि वो हर कीमत पर मुस्लिमों को दोयम दर्ज़े का नागरिक बनाकर रख देना चाहती है।
लोगों को करना होगा विरोध!
एक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह भी है कि राजनैतिक विपक्ष उतनी मजबूती से सरकार की मुख़ालिफ़त नहीं कर पाया है। न तो उसमें सड़कों पर उतरने का हौसला दिखा न ही लोगों को इकट्ठा करने की क्षमता ही दिख पाई। इन हालातों में संघर्ष की पूरी ज़िम्मेदारी लोगों पर आ गई है। तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि लोगों को अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी। राजनैतिक अगुआ का इंतज़ार किए बग़ैर सड़कों पर संघर्ष का शंखनाद जल्दी से जल्दी करना होगा।
CAB यह तय करेगा कि हमारा देश गाँधी, बुद्ध और अंबेडकर के सिद्धांतों पर चलेगा या हिंदू पाकिस्तान बन जाएगा। CAB यह भी तय करेगा कि आज़ादी के 72 सालों बाद क्या गाँधी के सिद्धांत ज़िन्ना की ज़िद के आगे घुटने टेक देंगे।

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