
'ग्राम प्रधान ने लाकर हम सबको टिकट दिया, हमें स्टेशन पर कोई टिकट नहीं मिला, प्रधान ने हमें टिकट दिए और सारे पैसे लिए' रेलवे टिकट दिखाते हुए गुजरात के वडोदरा से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के महखरा गांव में लौटे एक श्रमिक मज़दूर ने बताया। प्रवासी श्रमिक के इस बयान ने सरकारी दावों और कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है।
किराया वसूलने का नया तरीका- ब्लैक में हो रही टिकटों की होम डिलीवरी
लॉक डाउन के तीसरे चरण में श्रमिक मज़दूरों को लाने का सिलसिला जारी है, लेकिन रेल टिकट के नाम पर छिड़ी बहस पर आए दिन नए नए खुलासे हो रहे हैं जो सरकारी दावों की पोल खोल रहे हैं। प्रवासी मज़दूरों के लिए चलाए जा रहे श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में इन लोगों से बढ़ा हुआ किराया वसूला जा रहा है। बढ़े हुए किराए का साक्ष्य कभी दीन दयाल उपाध्याय स्टेशन से मिलता है, तो कभी लखनऊ, बाराबंकी, गोरखपुर जैसे तमाम स्टेशनों से मिलता है।
गुजरात के वडोदरा से यूपी के प्रयागराज आने वाले प्रवासी मजदूरों को बाराबंकी स्टेशन तक जाने वाली ट्रेन में बैठा दिया था, सभी लोगों से 560 रुपए किराया लिया गया है, टिकट के अनुसार दोनों स्टेशनों की दूरी 1154 किलोमीटर है।
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किराए के बारे में पूछने पर एक मजदूर ने बताया कि 'ग्राम प्रधान ने लाकर हम सबको टिकट दिया, हमें स्टेशन पर कोई टिकट नहीं मिला, प्रधान ने ही टिकट के सारे पैसे लिए।' नाम नहीं बताने के शर्त पर उस प्रवासी मज़दूर ने बताया कि 'हमारे पास और कोई विकल्प नहीं बचा था, प्रधान ने हम लोगों को टिकट दे दिया हमारे लिए वही बहुत है, पैसे लिए तो क्या हुआ हम अपने घर तो पहुँच रहे हैं, वर्ना भूख के मारे हम वहीं पर दम तोड़ देते।' 'हमने भी सुना है कि सरकार ने रेल किराया माफ कर दिया है लेकिन हमारी मजबूरी ऐसी है कि बिना पैसे दिए अपने घर वापस नहीं लौट सकते थे, फिर चाहे उधार लेना पड़े या कुछ और इंतज़ाम करना पड़े, दलाल तो हर जगह ही होते हैं।' भारी आवाज़ में उसने यह कहा।
हाल में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने दावा किया कि उन्होंने 7 लाख से अधिक प्रवासी मज़दूरों को अन्य राज्यों से लाया है, लेकिन किराए के अनुपात को लेकर कोई बयान नहीं दिया। 5 मई को योगी सरकार ने जनसुनवाई पोर्टल भी जारी किया, जिसपर अपनी जानकारी देकर प्रवासी मज़दूर अपने घर लौट सकते हैं, लेकिन सरकार का यह पोर्टल उतना कारगर नहीं दिख रहा जितना गुजरात में टिकटों के होम डिलीवरी का तरीका कारगर साबित हो रहा है।
क्या है किराए का सच?
श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से लौट रहे प्रवासी मजदूरों से लगातार किराया वसूला जा रहा है, किराए के साथ थर्मल स्क्रीनिंग, यात्रा के दौरान दिए जा रहे भोजन का चार्ज भी टिकट के साथ जोड़ा जा रहा है। गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना समेत कई राज्यों से लौटे प्रवासी मजदूरों से बढ़ाकर किराया लिए जाने पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 4 मई को ऐलान किया था कि प्रदेश कांग्रेस कमेटियां प्रवासी मज़दूरों को किराया देंगी, कांग्रेस अध्यक्ष के इस ऐलान के बाद पूरे देश में किराए को लेकर बहस छिड़ गई।
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भाजपा के वरिष्ठ सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने भी सोनिया के सुर में सरकार पर हमला बोला, प्रवासी मजदूरों से वसूले जा रहे किराए के फैसले पर स्वामी ने फटकार लगाया था।
इसके बाद रेल मंत्रालय की ओर से स्वास्थ्य मंत्रालय ने सफाई पेश की, स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने मीडिया को बताया, 'केंद्र या रेलवे ने कभी भी किसी मजदूर से किराए की बात नहीं की है, श्रमिक स्पेशल ट्रेन किराए के हिस्से का 85 फीसदी रेलवे दे रही है बाकी बचा 15 प्रतिशत राज्य सरकार को देना होता है।'
हालांकि अधिकारी के बयान को ठोस बनाने के लिए सरकार के किसी मंत्रालय या विभाग ने कोई सर्कुलर या नोटिफिकेशन नहीं जारी किया है। लेकिन पूर्व में रेल मंत्रालय द्वारा जारी किए गए 2 सर्कुलर ने तमाम प्रकार के विवादों को उत्पन्न किया है।
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2 मई की एक सर्कुलर में स्पष्ट तौर पर लिखा था, 'किसी स्टेशन पर टिकट नहीं बेचा जाएगा।' इसी सर्कुलर में आगे लिखा था कि रेलवे उन्हीं यात्रियों को स्वीकार कर रही है जिन्हें राज्य सरकार सुविधा देकर ला रही है। लेकिन इस सर्कुलर में कहीं इस बात का ज़िक्र नहीं किया गया कि मजदूरों से किराया नहीं लिया जाएगा, उन्हें यात्रा के दौरान या यात्रा के पहले टिकट दिया जाएगा और उनसे अधिक रकम नहीं वसूला जाएगा।
बहरहाल, रेलवे ने एक और सर्कुलर जारी किया था, जिसमें कई प्रकार की शर्तों के बारे में लिखा है जो विवादों और बहसों को नया रास्ता दे रहे हैं। सर्कुलर के अनुसार-
'जिस राज्य से श्रमिक ट्रेन स्पेशल चलेंगी वो राज्य रेलवे को यात्रियों की संख्या बताएगी। यह संख्या 1200 के आस- पास होनी चाहिए या फिर श्रमिक स्पेेशल ट्रेन की क्षमता के 90 फीसदी तक होनी चाहिए।'
'जहां से ट्रेन का संचालन शुरू होगा, वहां पर निर्धारित मजदूरों की संख्या के हिसाब से रेलवे टिकट प्रिंट करवाएगी और राज्य सरकार को सौंपेगी।'
'गंतव्य तक पहुंचने के बाद वहां की राज्य सरकार, श्रमिकों को टिकट देगी, उनसे किराया वसूलेगी, फिर वही वसूला गया किराया रेलवे के अधिकारियों को सौंप देगी।'
एक अन्य सर्कुलर में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि मेल एक्सप्रेस ट्रेन के साथ अतिरिक्त 30 रुपये सुपरफास्ट का चार्ज लगाया जाएगा साथ में और 20 रुपये देने होंगे।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि किराए के हिस्से का 85 फीसदी रेलवे दे रही है, हालांकि इस बात को लेकर अभी तक कोई आधिकारिक सर्कुलर नहीं जारी किया गया है लेकिन समय समय पर विपक्ष पर हमला करने के लिए भाजपा के नेता- मंत्री, अधिकारी के इस बयान को अपना हथियार बना रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने जानकारी देने से किया इंकार
स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी और ट्विटर पर भाजपा नेताओं के दावों पर स्पष्टीकरण के लिए एक्टिविस्ट जयदीप छोकर ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी, इस याचिका में उन्होंने प्रवासी मज़दूरों को घर पहुंचाने के लिए तत्काल व्यवस्था बनाने, उनसे किराया नहीं लिए जाने एवं लिए गए रेल किराए और अधिकारी के बयान पर स्पष्ट जानकारी की मांग की थी।
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई की। अधिकारी के बयान पर जवाब मांगे जाने पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किसी भी प्रकार की जानकारी देने से मना कर दिया। मेहता ने कहा कि रेलवे और राज्य सरकार के अनुपातों को साझा करने के निर्देश उन्हें नहीं मिले हैं। मेहता ने पीठ को बताया कि पूरे देश में ट्रेनों और बसों को उनके लॉजिस्टिक की क्षमता के अनुसार सेवा में लगाया गया है।
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याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मजदूरों की दयनीय स्थिति के बारे में पीठ को बताया, जज द्वारा रिपोर्ट का हवाला देने पर भूषण ने कहा कि इस संकट के समय में मजदूर 15 प्रतिशत किराया भी देने की हालात में नहीं हैं।
पीठ ने लिखित आदेश जारी कर इस याचिका का निपटारा कर दिया, अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि याचिका में किए गए मांग को पहले से ही पूरा किया जा रहा है, अतः इस मामले पर आगे कोई सुनवाई नहीं होगी और इस याचिका को यहीं पर बंद किया जाता है।
हालांकि यह बहस का कारण बन गया कि उच्चतम न्यायालय में भी सरकार ने किराए के अनुपात की जानकारी देने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया है। इससे उनकी मंशा का पता चलता है कि श्रामिकों से अतिरिक्त किराया लेने की प्रक्रिया को जारी रखा जाएगा।
किराया लौटने के लिए योगी सरकार नहीं कर रही कांग्रेस का समर्थन
यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने बताया कि राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देशानुसार यूपी कांग्रेस प्रवासी मजदूरों के किराए को वापस करना चाहती है, इस बाबत उन्होंने राज्य की योगी सरकार से प्रदेश में लौटे प्रवासी मज़दूरों की सूची मांगी है लेकिन उन्हें राज्य सरकार द्वारा कोई सूचना नहीं दी जा रही है।
लल्लू ने ट्वीट किया, 'कांग्रेस अध्यक्षा ने सभी PCC को प्रवासियों के ट्रेन किराया का ध्यान रखने के लिए निर्देशित किया था। हम प्रवासियों की सूची के लिए उप्र सरकार से पूछ रहे हैं और एक लिखित अनुरोध भी भेजा गया था। दो दिन बीत चुके हैं लेकिन सरकार द्वारा कोई विवरण नहीं दिया गया है।'
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इस संकट काल में प्रवासी मज़दूरों से बढ़ाकर किराया वसूलने की प्रक्रिया जारी हैं, उत्तर प्रदेश ही नहीं बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में लौटे श्रमिकों से किराया वसूला जा रहा है। रेलवे के सर्कुलर का बखूबी पालन हो रहा, रेलवे द्वारा निर्देशित है कि स्टेशन पर टिकटों की बिक्री नहीं होगी। इसके उलट सरकार ने वसूली का नया तरीका अपनाया है, नियमों का उल्लंघन कर टिकट सीधे मजदूरों के घर पर पहुंचाया जा रहा है। मजदूरों से यह नहीं पूछा जा रहा कि कई महीनों से बेरोजगार बैठे इन लोगों के पास टिकट का पैसा कहां से आएगा।
प्रश्न यह भी उठ रहा है कि रेलवे अधिकारियों और प्रधान की सांठगांठ से चल रही इस गैर कानूनी प्रक्रिया को किसने अनुमति दी है?
रेलवे जैसे सरकारी संस्थानों को क्या अब प्रधान या स्थानीय सरकार की मदद से ही चलाया जाएगा?
सरकार अपनी ही पीठ थपथपाने में व्यस्त दिखाई दे रही है, रेल मंत्री पीयूष गोयल ने पीएम केयर्स कोष में 151 करोड़ फंड जमा कराने की घोषणा की थी, इस बात को लेकर भी मंत्रालय ने कोई जवाब नहीं दिया था कि जब ट्रेन बंद है, विभाग घाटे में चल रही है तो कोष में राशि जमा करना आवश्यक है?
मजदूरों के प्रति क्यों संवेदनहीन है सरकार
मज़दूरों के प्रति सरकार की संवेदनहीनता जग जाहिर होती जा रही है, लॉक डाउन की मार सबसे अधिक श्रामिकों पर पड़ी है, भूख प्यास से लाचार मजदूर अपनी जान बचाने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल ही नापने को तैयार है, उन्हें क्या पता कि यह यात्रा उनके जीवन की आखरी यात्रा भी हो सकती है, लेकिन उनके पास कोई विकल्प भी तो नहीं है। सरकार दावे और ऐलान कर सराहना बटोर लेती है, लेकिन जब इनके क्रियान्वयन की बारी आती है तो योजनाएं कहीं रास्ते में ही दम तोड़ देती हैं।
तकनीकी वेबसाइट www.thejeshgn.com के अनुसार 5 मई तक 370 ऐसे लोगों की मौत हुई जिन्हें कोरोना नहीं हुआ था, लेकिन पैदल चलने के कारण उनकी सांस ने उनका साथ छोड़ दिया और नतीजन उनकी मौत हुई है। इसी वेबसाइट के अनुसार 1 मई तक वित्तीय संकट और भूखमरी के कारण 34 लोगों की मौत हुई है।
समय पर स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिलने के कारण 38 लोगों की जान जा चुकी है। लॉक डाउन के दौरान आत्महत्या(संक्रमण आदि के डर की वजह से) करने वालों की संख्या 73 है।
पुलिस अत्याचार की वजह से भी 11 लोगों ने अपनी जान गंवा दी है। यह आंकड़े सरकार के दावों और तैयारियों को चुनौती दे रही हैं, सरकार के पास इस बात का भी जवाब नहीं है कि लॉक डाउन कब खत्म होगा। सरकार अब कोरोना के साथ जीने वाली प्लान बना रही है, जल्द ही उसको भी अमलीजामा पहनाए जाने की आशंका है।
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