
सोशल मीडिया पर सूरत का एक वीडियो देखा, जिसमें बिहार के कुछ मजदूर एक जगह इकट्ठा हैं उसमें एक मजदूर घर वापसी को लेकर बिहार सरकार से अपील करता है, पहले वह अपने खाने, रहने और नौकरी के जाने की बात करता है फिर वह सीएम नीतीश कुमार को गाली देता है, गाली देते वक्त पर यही कहता है कि जब सारे राज्यों की सरकारें अपने लोगों को वापस बुला रही है तो नीतीश कुमार क्यों नहीं बुला रहे। इसके बाद वह लगातार गालियां देता है, बाद में नाम और मोबाइल नंबर भी बताता है।
यह भी पढ़ें: कोरोनावायरस- एक बीमारी, हजारों मौतें, बढ़ती चिंताए, सहमे लोग
महज एक वीडियो ही नहीं ऐसे तमाम वीडियो सोशल मीडिया पर भरे पड़े हैं जिसमें बिहार के मजदूर सरकार से घर पहुंचाने की बात कर रहे हैं लेकिन सरकार इन्हें जहां है वहीं रहने को कहते हुए एक हजार रुपए की नाकाफी मदद की बात कहती है। चुनावी वर्ष होने के बावजूद भी सरकार आखिर अपने लोगों के लिए आगे आकर क्यों मदद नहीं कर पा रही है, इसे लेकर अनेक तर्क दिए जा रहे हैं।
स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और महामारी का डर
बिहार की पृष्ठभूमि से आने वाले नीरज झा कहते हैं कि बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था पहले से ही काफी लचर रही है, पिछले 10 दिन में प्रदेश में कोरोना संक्रमितों की संख्या में भी 3 गुना इजाफा हुआ है ऐसे में सरकार के भीतर ये डर बसा हुआ है कि अगर बाहर से मजदूर बुलाए जाते हैं और उसमें कोई एक भी संक्रमित शामिल हुआ तो पूरी भीड़ को संक्रमित कर देगा, रही बात दूसरे राज्यों से तुलना की तो वहां संख्या हजारों में है जबकि बिहार में वापस लौटने वालों की संख्या लाखों में है, जिन्हें लाने, जांच करने व क्वारनटाइन करने में खासी फजीहत हो सकती है इसलिए सरकार कदम आगे बढ़ाने से हट रही है.
यह भी पढ़ें: कोरोना महामारी और दो हिस्सों में बंटा समाज
बसों की कमी
बिहार की राजनीति को काफी नजदीक से देख रहे अनुदीप जगलान कहते हैं कि बिहार में सरकारी बसों की संख्या महज 600 है, प्राइवेट बसों की संख्या करीब 15 हजार है। इन्हें अगर वापस लाने में लगाया जाएगा तो पहली दिक्कत बजट को लेकर आती है दूसरी दिक्कत सोशल डिस्टेंसिंग के पालन की, क्योंकि किसी भी बस में 20-25 लोग से ज्यादा नही बैठाए जा सकते ऐसे में इन बसों को लाखों मजदूरों को लाने में न जाने कितने चक्कर लगाने होंगे।
अनुदीप कहते हैं कि बसों से लाने का एक बड़ा नुकसान ये है कि कब कौन कहां उतर लिया उसका डेटा सरकार के पास नहीं रहेगा, ऐसे में फिर उन्हें लाने का मतलब महामारी को बढ़ावा देना है। नीतीश कुमार द्वारा केंद्र सरकार से स्पेशल ट्रेन चलाए जाने की मांग को वह सही बताते हैं। क्योंकि इससे सरकार के पास आंकड़े रहेंगे कि कितने लोग आ रहे हैं और इन्हें कहां क्वारंटाइन करना है।
चुनावी साल में भी बिहार में महामारी को लेकर जमकर राजनीति हो रही है, राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव कहते हैं कि नीतीश सरकार अगर असहज है तो बताए हम 2000 बसें देते हैं। पप्पू यादव ने भी बिहार सरकार को बसें देने का ऑफर किया है। इस बसों के ऑफर के बीच सियासत छिपी है, सियासत और महामारी के बीच नीतीश सरकार बुरी तरह फंस चुकी है।
यह भी पढ़ें: कोरोनावायरस- एक बीमारी, हजारों मौतें, बढ़ती चिंताए, सहमे लोग
महज एक वीडियो ही नहीं ऐसे तमाम वीडियो सोशल मीडिया पर भरे पड़े हैं जिसमें बिहार के मजदूर सरकार से घर पहुंचाने की बात कर रहे हैं लेकिन सरकार इन्हें जहां है वहीं रहने को कहते हुए एक हजार रुपए की नाकाफी मदद की बात कहती है। चुनावी वर्ष होने के बावजूद भी सरकार आखिर अपने लोगों के लिए आगे आकर क्यों मदद नहीं कर पा रही है, इसे लेकर अनेक तर्क दिए जा रहे हैं।
स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और महामारी का डर
बिहार की पृष्ठभूमि से आने वाले नीरज झा कहते हैं कि बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था पहले से ही काफी लचर रही है, पिछले 10 दिन में प्रदेश में कोरोना संक्रमितों की संख्या में भी 3 गुना इजाफा हुआ है ऐसे में सरकार के भीतर ये डर बसा हुआ है कि अगर बाहर से मजदूर बुलाए जाते हैं और उसमें कोई एक भी संक्रमित शामिल हुआ तो पूरी भीड़ को संक्रमित कर देगा, रही बात दूसरे राज्यों से तुलना की तो वहां संख्या हजारों में है जबकि बिहार में वापस लौटने वालों की संख्या लाखों में है, जिन्हें लाने, जांच करने व क्वारनटाइन करने में खासी फजीहत हो सकती है इसलिए सरकार कदम आगे बढ़ाने से हट रही है.
यह भी पढ़ें: कोरोना महामारी और दो हिस्सों में बंटा समाज
बसों की कमी
बिहार की राजनीति को काफी नजदीक से देख रहे अनुदीप जगलान कहते हैं कि बिहार में सरकारी बसों की संख्या महज 600 है, प्राइवेट बसों की संख्या करीब 15 हजार है। इन्हें अगर वापस लाने में लगाया जाएगा तो पहली दिक्कत बजट को लेकर आती है दूसरी दिक्कत सोशल डिस्टेंसिंग के पालन की, क्योंकि किसी भी बस में 20-25 लोग से ज्यादा नही बैठाए जा सकते ऐसे में इन बसों को लाखों मजदूरों को लाने में न जाने कितने चक्कर लगाने होंगे।
अनुदीप कहते हैं कि बसों से लाने का एक बड़ा नुकसान ये है कि कब कौन कहां उतर लिया उसका डेटा सरकार के पास नहीं रहेगा, ऐसे में फिर उन्हें लाने का मतलब महामारी को बढ़ावा देना है। नीतीश कुमार द्वारा केंद्र सरकार से स्पेशल ट्रेन चलाए जाने की मांग को वह सही बताते हैं। क्योंकि इससे सरकार के पास आंकड़े रहेंगे कि कितने लोग आ रहे हैं और इन्हें कहां क्वारंटाइन करना है।
चुनावी साल में भी बिहार में महामारी को लेकर जमकर राजनीति हो रही है, राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव कहते हैं कि नीतीश सरकार अगर असहज है तो बताए हम 2000 बसें देते हैं। पप्पू यादव ने भी बिहार सरकार को बसें देने का ऑफर किया है। इस बसों के ऑफर के बीच सियासत छिपी है, सियासत और महामारी के बीच नीतीश सरकार बुरी तरह फंस चुकी है।
Comments
Post a Comment