
बापू के आदर्श समृद्ध भारत के निर्माण में हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे। - प्रधानमंत्री मोदी का ये ट्वीट पढ़ने में बहुत सुखकारी है। इस देश की नींव में बापू के आदर्श हैं। देश के प्रधानमंत्री का नींव से जुड़ाव ज़रूरी भी है और सुखद भी। लेकिन एक सच्चाई है कि बेशक आप कुछ भी कहें, कुछ भी लिखें, लोग आपको आपकी करनी से ही पहचानेंगे। इसीलिए बापू ने कहा था - मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।
बापू के जीवन के तमाम उद्धरणों को रखने की जगह उनका जंतर रखा जा सकता है। गांधी जी का जंतर कुछ यूँ है - ‘‘मैं तुम्हे एक जंतर देता हूं। जब भी तुम्हे संदेह हो या तुम्हारा अहम तुम पर हावी होने लगे तो यह कसौटी अपनाओ, जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा, क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा? क्या उससे वह अपने ही जीवन और भाग्य पर काबू रख सकेगा? यानी क्या उससे उन करोड़ों लोगों को स्वराज मिल सकेगा, जिनके पेट भूखे हैं और आत्मा अतृप्त... तब तुम देखोगे कि तुम्हारा संदेह मिट रहा है और अहम समाप्त होता जा रहा है।’’
अब आते हैं मोदी जी के ट्वीट और उनके जीवन के संदेश पर। ट्वीट में मोदी जी गांधी के आदर्शों को अपनाने की बात कर रहे हैं, लेकिन उनकी राजनीति में उस शैली का प्रयोग करते दिखते हैं जिसका गांधी जी ने पुरज़ोर विरोध किया। हाल के दिनों में सराकर की नीतियों से असंतुष्ट अलग-अलग तबकों ने आंदोलन किया। लेकिन इनकी असंतुष्टि को दूर करने के लिए सरकार की तरफ़ से जवाब नहीं दिया गया। उल्टा असंतुष्ट लोगों को गुमराह कह दिया गया। आंदोलन में समर्थन करने वालों को देशद्रोही बता दिया गया। शिक्षाविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। किसानों पर, युवाओं पर, छात्रों पर, सामाजिक कार्यकर्ताओं पर, शिक्षकों पर लाठियाँ चलाईं गईं। संवाद के साधनों को ख़त्म करने की कोशिश हुई। विचाराभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगाए गए। संस्थाओं की रीढ़ तोड़ दी गई। लोगों को इस हद तक कमज़ोर बना देने की कोशिश हुई कि वो ज़रूरी सवाल न पूछ सकें।
मोदी की सरकार में देशद्रोह की धाराएँ लगाकर सामाजिक एक्टिविस्ट्स, छात्र-छात्राओं को गिरफ्तार किया गया। गांधी ख़ुद इस धारा के शिकार हुए। मोदी काल में सरकार और देश के बीच का अंतर ख़त्म कर देने की कोशिश चल रही है, जबकि गांधी ख़ुद देशप्रेम की भावना में डूबकर सरकार से सवाल पूछते थे, सरकार का विरोध करते थे। अन्याय के खिलाफ गांधी मुखर थे, मोदी सहमत न भी हों तो मौन हैं।
छात्रों के साथ हिंसा हुई- मोदी मौन रहे, एक्टिविस्ट्स के साथ हिंसा हुई - मोदी मौन रहे, मोदी समर्थकों ने सोशल मीडिया पर सरकार के आलोचक पत्रकारों (महिलाओं/पुरुषों) को गालियाँ दीं - एक्शन की दृष्टि से मोदी चुप रहे, मोदी जी की विचारधारा से जुड़े लोगों ने धर्म के नाम पर हिंसा की - मोदी जी ने कोई कठोर एक्शन नहीं लिया। दूसरी जानिब गांधी ने चौरा - चौरी की एक घटना के बाद अपना देशव्यापी आंदोलन वापिस ले लिया।
गांधी के पक्ष में मोदी की एक, दो या हज़ारों ट्वीट्स/तस्वीरों/वीडियो पर भारी हैं राजनीतिक जीवन में उनके द्वारा लिए गए वो फ़ैसले, या अपनाए गए वो तरीक़े, जिनका विरोध गांधी लगातार करते रहे।
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