
4 नवंबर को रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी गिरफ्तार क्या हुए भाजपा के नेताओं ने इसे पत्रकारिता पर हमला बताना शुरु कर दिया। सोशल मीडिया पर I stand with arnab जैसे तमाम हैसटैग ट्रेंड होने लगे। जबकि इस गिरफ्तारी का पत्रकारिता से कोई मतलब ही नहीं है। ये गिरफ्तारी तो अर्णब के फ्रॉड और इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक व उनकी मां कुमुद नाइक को आत्महत्या के लिए उकसाने को लेकर हुई है।
अर्णब की गिरफ्तारी पत्रकारिता पर हमला नहीं है। पत्रकारिता पर हमला क्या है वो हम आपको बताते हैं। पिछले साल यूपी के मिर्जापुर में एक प्राइमरी स्कूल में मिड डे मील में बच्चों को नमक रोटी दी गई। पत्रकार पवन जैसवाल ने इसपर रिपोर्ट की। योगी सरकार की किरकिरी हुई तो उन्होंने पवन के ही खिलाफ केस दर्ज कर दिया। पत्रकारिता पर हमले का दूसरा उदाहरण सुनिए। पिछले महीने बलरामपुर में लड़की के साथ रेप हुआ, पुलिस ने पोस्टमार्टम के तुरंत जबरन अंतिम संस्कार करा दिया। पत्रकारों ने इसपर रिपोर्ट छापी तो उनको नोटिस थमा दिया गया। एक अधिकारी ने धमकाते हुए कहा, बिना पोस्टमार्टम खबर चलाने की क्या जल्दी थी।
अर्णब की गिरफ्तारी जिन्हें पत्रकारिता पर हमला लगती है छत्तीसगढ़ के कंकेर का मामला सुने। यहां सत्ताधारी गुण्डों ने पत्रकार कमल शुक्ला को दिनदहाड़े पीटा। घटना का वीडियो वायरल भी हुआ लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया गया। झारखंड के रांची में पत्रकार आनंद दत्ता अपनी पत्नी के साथ सब्जी खरीदने निकले थे तभी पुलिस वालों ने पीट दिया। इस मामले पर भी सोशल मीडिया पर हंगामा हुआ लेकिन किसी भाजपा नेता ने पत्रकारिता पर हमला बताकर ट्वीट नहीं किय़ा। यूपी के बलिया में इसी साल अगस्त महीने में पत्रकार रतन कुमार सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई। तब भी पत्रकारिता खतरे में नहीं आई थी।
ऐसे न जाने कितने मामले हैं, जहां भाजपा के नेताओं ने, कार्यकर्ताओं ने पत्रकारों के खिलाफ केस किया। उनके साथ मारपीट की। लेकिन किसी तरह से कोई सुनवाई नहीं हुई। अब जब अर्णब को गिरफ्तार किया गया है तब पत्रकारिता खतरे में आ गई है। आप खुद सोचिए क्या किसी से काम करवा लेना और उसके पैसे न देना मीडिया की स्वतंत्रता है? किसी को इतना परेशान करो कि वह अपनी मां के साथ आत्महत्या कर ले और आरोपी के खिलाफ कार्रवाई भी न हो। क्या अन्वय नाइक को न्याय नहीं मिलना चाहिए? आपने देखा होगा कि यही अर्णब ने सुशांत सिंह की मौत के मामले में 3 महीने तक रिया चक्रवर्ती को निशाने पर लेकर उनका जीना हराम कर दिया। अब जब एक सुसाइड मामले में खुद आरोपी बनाए गए तो पत्रकारिता पर हमला बताने लगे।
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी अर्णब की गिरफ्तारी को पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर हमला बताती है और फासीवाद के खिलाफ खड़े होने की बात करती हैं। लेकिन यही स्मृति जी किसी और भाजपाशासित राज्य में पत्रकारों पर हो रहे हमले पर चुप्पी साध लेती हैं। कई बार तो ऐसा लगता है कि अर्णब की गिरफ्तारी से जैसे पूरी भाजपा अनाथ हो गई हो। अमित शाह, जेपी नड्डा, जावड़ेकर जैसे दिग्गज नेता सुबह से ट्वीट कर रहे हैं। बस मोदी जी के ट्वीट की कमी है।
आखिरी बात, अर्णब की गिरफ्तारी पत्रकारिता पर हमला नहीं है। पिछले एक साल में क्या आपने अर्णब की कोई ऐसी रिपोर्ट देखी जो जनहित में हो? अर्णब ने पिछली बार मोदी सरकार से सवाल कब पूछा था? अर्णब के अलावा कौन ऐसा पत्रकार है जो किसी राज्य के सीएम को ओ, ए सुन कहकर संबोधित करता है। कौन किसी राज्य के गृह मंत्री को कहता है कि ‘तुम हो कौन अनिल देशमुख’ कहीं के जागीरदार हो क्या? असल में अर्णब मोदी सरकार के अघोषित प्रवक्ता हैं। पत्रकारिता से उनका कोई मतलब नहीं। आज जब गिरफ्तार किया गया तो सबसे ज्यादा दर्द भाजपा को ही हो रहा है।
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अर्णब की गिरफ्तारी पत्रकारिता पर हमला नहीं है। पत्रकारिता पर हमला क्या है वो हम आपको बताते हैं। पिछले साल यूपी के मिर्जापुर में एक प्राइमरी स्कूल में मिड डे मील में बच्चों को नमक रोटी दी गई। पत्रकार पवन जैसवाल ने इसपर रिपोर्ट की। योगी सरकार की किरकिरी हुई तो उन्होंने पवन के ही खिलाफ केस दर्ज कर दिया। पत्रकारिता पर हमले का दूसरा उदाहरण सुनिए। पिछले महीने बलरामपुर में लड़की के साथ रेप हुआ, पुलिस ने पोस्टमार्टम के तुरंत जबरन अंतिम संस्कार करा दिया। पत्रकारों ने इसपर रिपोर्ट छापी तो उनको नोटिस थमा दिया गया। एक अधिकारी ने धमकाते हुए कहा, बिना पोस्टमार्टम खबर चलाने की क्या जल्दी थी।
अर्णब की गिरफ्तारी जिन्हें पत्रकारिता पर हमला लगती है छत्तीसगढ़ के कंकेर का मामला सुने। यहां सत्ताधारी गुण्डों ने पत्रकार कमल शुक्ला को दिनदहाड़े पीटा। घटना का वीडियो वायरल भी हुआ लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया गया। झारखंड के रांची में पत्रकार आनंद दत्ता अपनी पत्नी के साथ सब्जी खरीदने निकले थे तभी पुलिस वालों ने पीट दिया। इस मामले पर भी सोशल मीडिया पर हंगामा हुआ लेकिन किसी भाजपा नेता ने पत्रकारिता पर हमला बताकर ट्वीट नहीं किय़ा। यूपी के बलिया में इसी साल अगस्त महीने में पत्रकार रतन कुमार सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई। तब भी पत्रकारिता खतरे में नहीं आई थी।
ऐसे न जाने कितने मामले हैं, जहां भाजपा के नेताओं ने, कार्यकर्ताओं ने पत्रकारों के खिलाफ केस किया। उनके साथ मारपीट की। लेकिन किसी तरह से कोई सुनवाई नहीं हुई। अब जब अर्णब को गिरफ्तार किया गया है तब पत्रकारिता खतरे में आ गई है। आप खुद सोचिए क्या किसी से काम करवा लेना और उसके पैसे न देना मीडिया की स्वतंत्रता है? किसी को इतना परेशान करो कि वह अपनी मां के साथ आत्महत्या कर ले और आरोपी के खिलाफ कार्रवाई भी न हो। क्या अन्वय नाइक को न्याय नहीं मिलना चाहिए? आपने देखा होगा कि यही अर्णब ने सुशांत सिंह की मौत के मामले में 3 महीने तक रिया चक्रवर्ती को निशाने पर लेकर उनका जीना हराम कर दिया। अब जब एक सुसाइड मामले में खुद आरोपी बनाए गए तो पत्रकारिता पर हमला बताने लगे।
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी अर्णब की गिरफ्तारी को पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर हमला बताती है और फासीवाद के खिलाफ खड़े होने की बात करती हैं। लेकिन यही स्मृति जी किसी और भाजपाशासित राज्य में पत्रकारों पर हो रहे हमले पर चुप्पी साध लेती हैं। कई बार तो ऐसा लगता है कि अर्णब की गिरफ्तारी से जैसे पूरी भाजपा अनाथ हो गई हो। अमित शाह, जेपी नड्डा, जावड़ेकर जैसे दिग्गज नेता सुबह से ट्वीट कर रहे हैं। बस मोदी जी के ट्वीट की कमी है।
आखिरी बात, अर्णब की गिरफ्तारी पत्रकारिता पर हमला नहीं है। पिछले एक साल में क्या आपने अर्णब की कोई ऐसी रिपोर्ट देखी जो जनहित में हो? अर्णब ने पिछली बार मोदी सरकार से सवाल कब पूछा था? अर्णब के अलावा कौन ऐसा पत्रकार है जो किसी राज्य के सीएम को ओ, ए सुन कहकर संबोधित करता है। कौन किसी राज्य के गृह मंत्री को कहता है कि ‘तुम हो कौन अनिल देशमुख’ कहीं के जागीरदार हो क्या? असल में अर्णब मोदी सरकार के अघोषित प्रवक्ता हैं। पत्रकारिता से उनका कोई मतलब नहीं। आज जब गिरफ्तार किया गया तो सबसे ज्यादा दर्द भाजपा को ही हो रहा है।
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