
प्रस्तावना-
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जितनी चर्चा उनकी जयंती की नहीं होती उससे कहीं अधिक चर्चा उनकी पुण्यतिथि की होती है। नेताजी के ड्राइवर कर्नल निजामुद्दीन दावा करते हैं कि सुभाष चंद्र बोस की मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुई। न सिर्फ वह बल्कि तमाम और लोग भी सुभाष चंद्र बोस को लेकर अलग-अलग दावा करते हैं, आज उनकी जयंती पर हम उन्हीं कुछ दावों पर बात करेंगे।
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पराक्रम दिवस बना नेताजी की पहचान-
आजाद हिन्द फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती से पहले केंद्र की मोदी सरकार का उनके प्रति प्रेम उमड़ आया और नेताजी की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का फैसला कर दिया। इससे असर ये होगा कि आने वाले वक्त में न सिर्फ राजनीतिक पार्टियों के दफ्तर में बल्कि सांस्कृतिक मंत्रालय में इस दिवस को मनाना अनिवार्य हो जाएगा। हालांकि नेताजी के परपोते सीके बोस के मुताबिक जनता के भीतर नेताजी को लेकर प्रेम कभी कम नहीं था वह तो हमेशा से प्रेम दिवस के रूप में मनाती रही है। अगर सरकार ने ऐसा किया है तो इससे खुशी ही होती है।
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जापान की मदद से बनाई फौज
सुभाष चंद्र बोस की देशभक्ति पर किसी तरह का कोई सवालिया निशान नहीं लगाया जा सकता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और उनसे लड़ने के लिए जापान की मदद लेकर आजाद हिन्द फौज का गठन कर दिया। उसी वक्त उन्होंने नारा दिया 'तुम मुझे खून दो हम तुम्हें आजादी देंगे'। इस नारे ने देश के युवाओं की मुर्दाशांति को झकझोर देने वाला था। उन्हें एहसास दिलाने वाला था कि तुम्हारा खून इस देश को आजाद करवा सकता है यही कारण रहा कि बहुत कम समय में सुभाष चंद्र बोस ने एक बड़ी फौज खड़ी कर ली। ये सब जब वह कर रहे थे उसी वक्त ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों के जरिए 1941 में उन्हें मौत के घाट उतारने का आदेश दे चुकी थी। ये बात नेताजी को भी मालूम थी इसलिए वह सतर्क रहे।
पूर्वोत्तर राज्यों में ब्रिटिश के खिलाफ खड़े
नेताजी 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने सुप्रीम कमाण्डर के रूप में अपनी फौज को संबोधित करते हुए उसमें साहस भर रहे थे, तभी उन्होंने नारा दिया 'दिल्ली चलो।' जवान उत्तेजित थे और वह निकल पड़े, नेताजी ने जापानी सेना के साथ मिलकर कोहिमा व इम्फाल में ब्रिटिश सैनिको से लड़ाई लड़ी। नेताजी की ताकत इतनी बढ़ गई थी कि 21 अक्टूबर 1943 को उन्होंने स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई जिसे जापान, कोरिया, चीन, इटली व जर्मनी जैसे देशों ने मान्यता भी दे दी। अंग्रेजो को ये बात हजम नहीं हुई 1944 में दोनो सेनाओं के बीच फिर से भयंकर युद्ध हुआ, यहां भी नेताजी ने बाजी मारी और कई भारतीय राज्यों को अंग्रेजो से मुक्त करवा लिया।
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कोहिमा का युद्ध सबसे ज्यादा व्यापक था, क्योंकि 4 अप्रैल से शुरु हुआ ये युद्ध 22 जून तक चलता रहा। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा, ये एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। 6 जुलाई 1944 को नेताजी ने रंगून के रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया और उनसे निर्णायक युद्ध में विजय के लिए आशीर्वाद मांगा। यही संदेश उनके जीवन का आखिरी संदेश रहा। कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 में नेताजी की मौत एक विमान दुर्घटना में हो गई लेकिन परिवार के लोग इसे खारिज करते हैं, 18 अगस्त को उनकी मौत का दावा हबीबउर रहमान करते हैं। वह कहते हैं कि विमान पर नेताजी सवार हुए और वह उड़ान भरते ही विस्फोट कर गया। जिससे नेताजी गंभीर रूप से जल गए, अस्पताल में भर्ती करवाया गया लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।
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हालांकि उनके इस दावे को घर वाले खारिज करते हैं, वह कहते हैं कि नेताजी रूस में नजरबंद थे, यदि ऐसा नहीं है तो भारत की सरकार ने उनकी मृत्यु से संबंधित दस्तावेज अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किए। उनका ये सवाल भी वाजिब ही है। विमानों के क्रैश होने और उससे होने वाली मौतों का आंकड़ा सरकार के पास होता ही है फिर सरकार उसे पब्लिक क्यों नहीं करती।
नेताजी की मौत
नेताजी के ड्राइवर रहे कर्नल निजामुद्दीन बताते हैं कि नेताजी की मौत विमान दुर्घटना में हुई ही नहीं, उन्होंने दावा किया कि वह खुद नेताजी के साथ यूरोप और एशिया के देशों में गए, निजामुद्दीन ने बताया 1947 में उन्होंने बर्मा के सितांग नदी के किनारे उन्हें छोड़ा था, वहां से वह जापानी अफसरों के साथ चले गए थे, उसके बाद किसी भी तरह से कोई मुलाकात नहीं हुई।
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कुछ साल पहले गुमनाबी बाबा का नाम बड़ा मशहूर हुआ था। गुमनामी बाबा फैजाबाद में लंबे वक्त तक रहे। वह फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते, बांग्ला और जर्मन भी बिना रुके बोलते। उनके पास महंगी सिगरेट, विदेशी शराब मिलती थी। 1985 में जब उनकी मौत हुई तब उनके पास से नेताजी की कुछ पुरानी फोटो भी प्राप्त हुई. जिससे कयास लगाया जाने लगा कि गुमनाबी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे। क्योंकि बाबा के पास आजाद हिन्द की यूनिफार्म मिली, रोलेक्स की घड़ी मिली। शाहनवाज और खोसला आयोग की रिपोर्ट मिली। यही कारण है कि जब उनके अंतिम संस्कार की बात आई तो जहां भगवान श्री राम ने जलसमाधि ली थी वहीं उनका अंतिम संस्कार किया गया।
कुछ साल पहले देवनाथ दास की कहानी सामने आई थी, दरअसल पश्चिम बंगाल की सरकार ने नेताजी से जुड़ी कुछ फाइले सार्वजनिक की। इन फाइलों में नेताजी के दोस्त देवनाथ जी की चर्चा थी, देवनाथ ने 1945 में दावा किया था कि नेताजी चीन के मंचूरिया में है। दास ने दावा किया कि नेताजी को आाशंका थी की तीसरा विश्वयुद्ध होगा। वह देखना चाहते थे कि कौन भारत के साथ है और कौन दुश्मन देशों के साथ खड़ा है? हालांकि तीसरा विश्वयुद्ध हुआ नहीं।
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नेताजी ने जिस ब्रिटिश सरकार की नाक में दम कर रखा था वहां की वेबसाइट का दावा है कि नेताजी की मौत 18 अगस्त 1945 को ही हो गई थी। एक अन्य वेबसाइड का तर्क है कि अगर सुभाष चंद्र बोस जिंदा होते तो वह ब्रिटिश सरकार से मुकाबला करते। हालांकि इन बातों का कोई इत्तेफाक नहीं रह जाता। नेताजी की मौत आज भी राज है। राज से कब पर्दा उठेगा ये आज भविष्य के गर्भ में छिपा है।
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