
उत्तराखंड में एकबार फिर से जल महाप्रलय आया है। इस आपदा में कम से कम 200 लोगों के मारे जाने की आशंका है। हजारों लोगों के फंसे होने की खबर है। पहाड़ी राज्यों में बार-बार आती त्रासदी बताती है कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ मत करो। विकास के नाम पर संतुलन खराब करके किसी एक को फायदा पहुंचाने की कोशिश की जाएगी तो नतीजा मौत और तबाही के रूप में ही सामने आएगा।
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विकास के नाम पर प्रकृति से खिलवाड़ किसको फायदा पहुंचाने के लिए सरकार कर रही है वह सभी को पता है। अगर आप वैज्ञानिक सोच वाले हैं तो तुरंत पहुंच जाएंगे कि आपदा की वजह क्या है। अगर आप आस्तिक हैं तो ये विचार करिए कि आखिर प्रकृति आम लोगों से नाराज क्यों हैं? क्या इंसानों पर हो रहे जुल्म से नाराज है? भगवान तो सबसे ज्यादा इंसानों से प्रेम करते हैं फिर उन्हें ऐसा दुख क्यों देंगे? क्या ऐसी घटनाएं सबक सिखाने के लिए होती हैं?
उत्तराखंड 2013 के महाप्रलय को अभी भूला नहीं होगा। 35 स्टेट हाईवे, 13 नेशनल हाईवे, 172 छोटे बड़े पुल, 2385 जिला व ग्रामीण सड़कें, 2 हजार से अधिक भवन पूरी तरह से ध्वस्त हो गए थे। हजारों लोगों की जान गई थी। 10 हजार से अधिक जनवरों की मौत हुई थी। मुझे पूरा भरोसा है कि लोग भूले नहीं होंगे, क्योंकि जब भी वह भूलने का प्रयास करते हैं उन्हें नर कंकाल बरामद हो जाते हैं जो 2013 के विध्वंस की याद ताजा कर देते हैं।
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करीब 450 से अधिक संवेदनशील गांवों को सरकार सुरक्षा की दृष्टि से रहने लायक नहीं मानती लेकिन वहां लोग रह रहे हैं। राहत का असल मतलब होता है कि प्रभावित लोगों को पुरानी स्थिति के लायक बनाया जाए लेकिन सरकार उस स्तर तक जाकर उन्हें सुविधा नहीं दे सकी। नदी, नालों के किनारे आवासीय निर्माण न करने के आदेश दिए जाते रहे हैं लेकिन उसपर अमल नहीं किया जा रहा है। आपदा के बार-बार झटके के बावजूद सरकार कोई ठोस पहल नहीं कर पाई है। चमोली, हरिद्वार, ऋषिकेश में तो नदी के किनारे बसे लोगों को देखकर लोग डर जाते हैं।
ध्यान रहे, दोषी सिर्फ और सिर्फ लोग नहीं हैं बल्कि सरकार उनसे भी बड़ी दोषी है, पिछले एक दशक से मौसम पर नजर बनाए रखने के लिए प्रदेश में डॉप्लर रडार लगाने का दावा किया जा रहा है लेकिन राज्य सरकार और मौसम विभाग के बीच बात न बनने से ये काम आज तक भी नहीं हो सका है। जिन इलाकों में भी डैम व पॉवर प्लांट का प्रोजेक्ट लगाया जा रहा था वहां की जनता ने इसका पहले विरोध किया था, लेकिन उन्हें विकास विरोधी बताकर खारिज कर दिया गया।
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ये बड़ी बेसिक सी बात है जब भी प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने वालों की आलोचना की जाती है वह आलोचना करने वालों को अर्बन नक्सल, देशद्रोही, विकास अवरोध जैसी उपमाओं के जरिए खारिज कर देते हैं। बहुत सीधी सी बात ये है कि प्रकृति का दोहन करके जो विकास किया जा रहा है वह टिकाऊ विकास नहीं है। उद्योगपतियों से जन्मे विकास की वजह से ही उत्तराखंड में बार बार आपदाएं सामने आ रही हैं। टिकाऊ विकास की जरूरत है। वरना ये त्राासदियां एकदिन सबकुछ बर्बाद कर देंगी।
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source link: https://www.molitics.in/article/781/glacier-breakdown-chamoli-2013-uttarakhand-tragedy
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