
बचपन में हम सबने एक कहानी पढ़ी थी। एक व्यक्ति के पास मुर्गी थी जो हर दिन एक सोने का अंडा देती थी। मालिक उसे बाजार में बेचकर रोज पैसा कमाता। कुछ समय बाद उसके मन में लालच आ गया और वह एक साथ बहुत सारा सोने का अंडा पाने के लिए मुर्गी को काट दिया। इस कहानी से बच्चो को सीख दी गई कि लालच बुरी बला है।
अब इस कहानी का वर्तमान स्वरुप देखिए। देश की सबसे बड़ी सरकारी तेल कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड यानी बीपीसीएल बिकने जा रही है। मोदी सरकार इसे निजी हाथों में सौंपने की पूरी तैयारी कर चुकी है। बस ग्राहक मिलने की देरी है। अमूमन देखा गया है कि जो सरकारी संस्थान या कंपनी घाटे में चल रहे सरकार उन्हें ही निजी हाथों को सौंपती है लेकिन बीपीसीएल तो सोने की मुर्गी है। आप घाटे की बात ही छोड़िए। इस कंपनी ने बीते अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही के बीच 2777.6 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया। मतलब हर महीने 900 करोड़। हर दिन 30 करोड़। हर घंटे सवा करोड़ रुपए की कमाई इस कंपनी ने करके सरकार को दी। लेकिन इसे जल्द ही निजी हाथों में सौंप दिया जाएगा।
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बीपीसीएल में भारत सरकार की हिस्सेदारी 53 फीसदी है। मुंबई, कोच्चि, बीना, नुमालीगढ़ सहित बीपीसीएल की कुल चार रिफाइनरियां हैं। पूरे देश में 15078 पेट्रोल पंप और 6004 एलपीजी वितरक हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि कंपनी कितनी विशाल है और निजीकरण होते ही इसके कर्मचारियों का क्या हाल होगा। किसान आंदोलन को देखते हुए एक बड़ा सवाल ये भी आता है कि आखिर विपक्षी दल इसका विरोध क्यों नहीं कर रहे हैं। तो दोस्तो, इसके पीछे भी एक बड़ी रोचक वजह है। वजह ये कि बीपीसीएल को पूरी तरह से निजी हाथों में या फिर किसी विदेशी कंपनी को बेचनेक लिए मोदी सरकार को संसद की अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी क्योंकि सरकार ने बीपीसीएल के राष्ट्रीयकरण संबंधी कानून को 2016 में रद्द कर दिया था।
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बीपीसीएल देश की बड़े मुनाफे वाली सरकारी कंपनी है जो हर साल 1 लाख करोड़ रुपए टैक्स के रूप में देती है। सरकारी दस्तावेज के मुताबिक वित्त वर्ष 2018-19 में कंपनी ने टैक्स के रूप में तीन खेप में क्रमश 95034 करोड़, 35 करोड़ व 24 लाख यानी कुल मिलाकर एक लाख करोड़ रुपए से भी अधिक रकम टैक्स के रूप में दी गई। पिछले तीन सालों से कंपनी का मुनाफा 5000 करोड़ रुपए रहा है। केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने पिछले साल संसद में बोलते हुए कहा था कि 28 सरकारी कंपनियों की स्ट्रैटजिक सेल से भारत सरकार को 65000 करोड़ रुपए राजस्व के रूप में मिलेंगे। हैरानी की बात ये है कि सिर्फ बीपीसीएल ही सरकार को 1 लाख करोड़ टैक्स के रूप में दे रही है।
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अनुराग ठाकुर ने पिछले साल लोकसभा में लिखित में जवाब दिया था कि सरकार हानि और लाभ के आधार पर विनिवेश यानी निजीकरण का फैसला नहीं करती। बल्कि उन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में विनिवेश का फैसला करती है जो उनकी प्राथमिकता वाले क्षेत्र में नहीं आते हैं। विकास विकास का अलाप जपने वाली इस सरकार से कौन पूछे कि भारत जैसे देश के लिए क्या पेट्रोलियम और दवाएं प्राथमिकता के क्षेत्र में नहीं आती। आखिर सवाल भी कौन पूछे। क्या पता सवाल पूछने के लिए ही केस दर्ज हो जाए। देशद्रोही का ठप्पा लगेगा वो अलग। खैर।
मैने बताया कि बीपीसीएल के देशभर में 15 हजार से अधिक पेट्रोल पंप हैं। लाखों की संख्या में कर्मचारी हैं. उन्हीं कर्मचारियों ने कंपनी के रणनीतिक विनिवेश का विरोध किया। उनके मुताबिक कंपनी को कौड़ियों के दाम पर बेचा जा रहा है। एकबारगी राजस्व की प्राप्ति तो हो जाएगी लेकिन आने वाले समय में बड़ा नुकसान होगा। भविष्य में नुकसान होगा स्वाभाविक है। क्योंकि बीपीसीएल भारतीय सेना व रेलवे को प्राथमिकता के साथ अपनी सेवाएं देती है। कॉरपोरेट-सोशल दायित्व में भी तमाम पीएसयू की तरह इस कंपनी ने प्राइवेट कंपनियों के मुकाबले बेहतर काम करके दिखाया है। कंपनी के टर्न ओवर को ३.३५ लाख करोड़ के ऊपर पहुंचाया है। कोरोना काल को छोड़ दे तो कंपनी ने बीते पांच साल में 17246 करोड़ का लाभ का भुगतान किया है।
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सवाल है कि बीपीसीएल को खरीदेगा कौन। वही मोदी जी के मित्र। राहुल गांधी तो सदन में भी बोल चुके हैं ये कि ये सरकार हम दो हमारे दो के आधार पर चल रही है। मुुद्दे पर आते हैं। कंपनी को खरीदने में कई विदेशी कंपनियां भी हैं जैसे रूस की रोसनेट, संयुक्त अरब अमीरात की एडनाक कंपनी। वहीं अदानी, अंबानी, एस्सार, वेदांता भी इसे खरीद सकते हैं। हालांकि कई कंपनियां इस कारण पीछे हट रही हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि आने वाले वक्त में लोग इलेक्ट्रानिक की तरफ मुड़ेंगे। ध्यान रहे बीपीसीएल के पास 9 सब्सिडियरी कंपनियां हैं, इन सभी के 100 फीसदी शेयर बीपीसीएल के पास है। कंपनी के निजी हाथों में जाते ही इन कंपनियों का भी बिक जाएगा। यानी बड़ी मात्रा में लोगों से रोजगार छिन जाएगा। इस समय लगातार नौकरियां जा रही हैं, रोजगार के अवसर पैदा करने की जरूरत है। उस वक्त बड़ी मात्रा में लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा किया जा रहा है।
कंपनी के निजी हाथों में जाने से सिर्फ कंपनी का मालिकाना हक ही सरकार से नहीं जाएगा बल्कि बीपीसीएल के पास जो जमीनें और रिफाइनरीज है वह भी औने-पौने दामों पर सरकार अपने किसी पसंदीदा कॉरपोरेट के हवाले कर देगी। देश नहीं बिकने दूंगा की बात करने वाले खुलेआम देश की संपदाओं को बेच रहे हैं। जय श्री राम, वंदे मातरम और भारत माता की जय के जरिए यही लोग देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांट रहे हैं। आर्थिक रूप से कमजोर हो रहे भारत को एक ऐसी सरकार की जरूरत थी जो सरकारी संस्थानों को मजबूत करे। लेकिन यहां तो उसे सही करने के बजाय खत्म करने पर ही जोर दिया जा रहा है।
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