
ये दुनिया तब और खूबसूरत लगने लगती है जब पता हो कि अब इससे विदा लेने का वक्त आया है। कभी सोचा है कि कैंसर से जंग लड़ रहा इंसान इस दुनिया को लेकर, परिवार को लेकर क्या सोचता है, कभी खयाल आया कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है जिसे ये पता है कि उसे आने वाली होली देखे बिना इस दुनिया से विदा हो जाना है। उनकी बेबस आंखों में जितना दर्द दिखता है उसके आगे हम इतने बेबस हो जाते हैं कि कुछ सोचने का समय ही नहीं होता।
एक सिंगर जब कैंसर की चपेट में आता है तो अपना सबसे अच्छा गाना गा लेना चाहता है। वह आखिरी बार उस गाने पर मिली तालियों को ही बटोरकर मर जाना चाहता है। एक अध्यापक अपने सबसे बेहतर बैच के सामने अपना सबसे अच्छा लैक्चर देकर सूकून से मरने की तमन्ना लिए मर जाता है। एक बढ़ई अपने हाथ से सबसे खूबसूरत स्टूल बनाकर इस दुनिया से विदा हो जाना चाहता है। पर ये सब भी एक अधूरा ख्वाब रह जाता है। और जबरन उसे दुनिया से विदा हो जाना हो जाता है।
मरना इस दुनिया का सबसे बड़ा दर्द है। एक पिता के सामने ही जब उसका बेटा कैंसर से जूझ रहा होता है तो वह उसके पहले मरने की दुआ करता है। बच्चे के चेहरे पर छाया दर्द उसे रोज-रोज मार देता है। यही हाल एक बेटे का भी होता है पिता के लिए अस्पतालों का चक्कर लगाते हुए उसे हर पल डॉक्टर में भगवान नजर आता है पर वो भगवान भी जब उसे नहीं बचा पता तो उसका भरोसा भगवान से भी उठ जाता है।
मेरे एक दोस्त के पिता को कैंसर हुआ, पहला चरण पहुंचा फिर दूसरा, तीसरा और फिर चौथा पहुंच आया। दोस्त की मुस्कुराहट बदल गई वह जोर से हंसता पर अगले ही पल उसकी आंखों से आंसू निकल आते। उस दर्द को महसूस करने की शक्ति भगवान ने इस दुनिया में अभी किसी को दी ही नहीं है। लाख कोशिशों के बाद भी जब पिता को नहीं बचाया जा सका तो वह दर्दविहीन हो गया अब उसे किसी बात का फर्क ही नहीं पड़ता। कैंसर ने उसके दिमाग पर ऐसी चोट की है कि वह कुछ समझने की हालत में बचा ही नहीं।
हम जब विश्वगुरू बन जाएंगे तो ठाठ से दुनिया के हर देश को कर्ज देंगे, उसकी मदद करेंगे, उसे भी दुनिया का ताकतवार देश बनाएंगे पर बेड पर पड़े चौथे स्टेज के कैंसर के मरीज के दर्द को महसूस नहीं कर पाएंगे। कहते हैं कि मौत कोई लिखकर नहीं आया पर हर साल कैंसर से एक तय तारीख के बीच हजारों की तादाद में लोग मर जाते हैं। आखिरी वक्त में उन्हें बस ऐसा लगता है कि बस कुछ देर और कुछ दिन और।
मौत पर किसी का बस नहीं चलता। कैंसर मरीजों से पटी एक अस्पताल में जाने पर दुनिया के सबसे बड़े दर्द को महसूस किया जा सकता है। बेड के बगल बैठी माओं के दर्द, अस्पताल परिसर में बेबस बेटे का दर्द, घर पर पिता के इंतजार में खड़ी बहन का दर्द किसी भी मशीन से नहीं मापा जा सकता। हम बेबस हैं, हम इतने लाचार हैं कि तमाम उपलब्धियों को गिनाते वक्त ये भूल जाते हैं कि हमने इस बीमारी को अभी भी लाइलाज छोड़ रहा है, हम बस मरते हुए देखते रहे हैं दर्द महसूस करने से बचते रहे हैं।
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