
पश्चिम बंगाल में भाजपा को जितना बड़ा प्रतिद्वंदी बताया जा रहा है असल में उतना बड़ा है नहीं। अब चूंकि भाजपा अपने प्रचार तंत्र के जरिए ही सत्ता तक पहुंचती है इसलिए दिल्ली से लेकर कोलकाता तक की मीडिया को इस काम में लगा दिया गया है कि भाजपा और टीएमसी का सीधा मुकाबला है और उस मुकाबले में भाजपा आगे जा रही है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। इसके कुछ वाजिब कारण हैं।
भाजपा के फायरब्रांड नेताओं के साथ भाषा की दिक्कत
भाजपा के आधे से अधिक नेता हिन्दी भाषी हैं। अंग्रेजी भी ठीक-ठाक है। लेकिन बांग्ला में सभी की जुबान तंग है। ऐसे में जब वह बंगाल में किसी रैली को संबोधित करते हैं तो वहां की जनता से सीधे तौर पर कनेक्ट नहीं कर पाते। उदाहरण के लिए योगी आदित्यनाथ को ले सकते हैं। उत्तर भारत के किसी भी राज्य में जब चुनाव होता है तो योगी आदित्यनाथ स्टार प्रचारक होते हैं। बंगाल और असम भी इन्हें भेजा जाता है लेकिन जो क्रेज इनका हिन्दी पट्टी के राज्यों में है वह गैर हिन्दी राज्यों में नहीं है। यही कारण है कि पिछले दिनों रोड शो के दौरान भीड़ नदारत रही।
भाजपा का चुनावी नारा 'आत्मघाती'
भाजपा ने नारा दिया 'बंगाल को चाहिए अपनी बेटी' जैसे ही ये नारा सामने आया इसबात की चर्चा शुरु हो गई है कि भाजपा के पास अपनी बेटी के रूप में कौन है? पिछले दिनों सरकार समर्थक जी न्यूज ने शो किया था जिसमें पूछा था कि बंगाल की असली बेटी कौन? दीदी या मोदी? मोदी को बेटी के रूप में प्रजेंट करना कितना हास्यास्पद है। इससे न सिर्फ चैनल की किरकिरी हुई बल्कि बंगाल की बेटी जैसे मुद्दे पर टीएमसी और ममता बनर्जी और मजबूत हुई।
टीएमसी ने नारा दिया है - 'बंग्ला निजेर मेये के चाए', (बंगाल अपनी बेटी को चाहता है)
जनता को बखूबी पसंद भी आ रहा है। बंगाल की बेटी नारे में भाजपा फेल रही तो ममता बनर्जी को बुआ बताने पर जुट गई। ऐसा वह सीएम के भतीजे अभिषेक बनर्जी को लेकर कह रहे हैं। असल में लगातार बदलते नारों के बीच भाजपा खुद कन्फ्यूज हो गई है और उसे समझ नहीं आ रहा कि टीएमसी को कैसे मैनेज किया जाए.
महिला मुद्दे पर आप टीएमसी को नहीं घेर सकते। ममता बनर्जी को लोग दीदी के नाम से जानते हैं। दीदी के रूप में वह बंगाल में इतनी पॉपुलर हैं कि यही उनका असली नाम बन गया है। जब भी किसी रैली में वह जाती हैं खुद को दीदी के रूप में ही जनता के सामने रखती हैं। दीदी को भाई-बहन में सबसे बड़ी ऐसे व्यक्ति के रूप में पहचाना जाता है जो सबकी फिक्र करती है। बंगाल में पिछली सरकारों को चुनौती देने के लिए ममता का ये नाम बेहद प्रभावी साबित हुआ था।
भाजपा का मुख्य नेता कौन
बंगाल में जितनी भी पार्टियां चुनावी मैदान में है सबके पास सीएम पद का एक चेहरा है लेकिन भाजपा के पास नहीं है। बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष हैं। दिलीप की छवि प्रदेश में ऐसी नहीं है कि वह एक हुजूम को अपने पीछे खड़ा कर सकें। यही दिल्ली में हुआ था। पार्टी ने चुनाव के दौरान सीएम कैंडिडेट नहीं घोषित किया था। जनता में कन्फ्यूजन हो गया। नतीजतन पार्टी को एक बड़ी हार झेलनी पड़ी। बंगाल में भी सीएम प्रत्याशी नहीं घोषित किया गया है ऐसे में पार्टी बेहतर प्रदर्शन करे इसकी उम्मीद कम है।
भाजपा के लिए हिंसा कितनी प्रभावी
भाजपा अपने कार्यकर्ताओं के साथ हुई हिंसा को चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बना लिया है। लेकिन कई बार यही दांव उल्टा पड़ जाता है। क्योंकि तमाम ऐसे मामले भी सामने आए जहां आपसी विवाद को भी पार्टी का रंग देने की कोशिश की गई जिससे लोगों के बीच ये संदेश गया कि कार्यकर्ताओं के साथ अन्याय दूसरी वजहों से हो रहा है लेकिन सत्ता की लालच में भाजपा इसे राजनीतिक रंग दे रही है। पिछले दिनों एक दादी की पिटाई का मामला भी ऐसा ही था पहले आरोप टीएमसी पर लगाया गया, लेकिन बात में पता चला कि उसके ही बेटे ने उसे प्रताड़ित किया। बुरी तरह से पिटाई की।
पिछले चुनाव के नतीजे
पश्चिम बंगाल में साल 2016 में हुए विधानसभा चुनाव भाजपा को सिर्फ 3 सीटे मिली थी। वह टीएमसी, माकपा, कांग्रेस से भी बहुत पीछे थी। ऐसा तब रहा जब लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा ने राज्य के भीतर बेहतर प्रदर्शन किया था। कुछ लोग अब लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों को लेकर कयास लगा रहे हैं कि भाजपा बेहतर प्रदर्शन करेगी। लेकिन उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए कि लोकसभा के वक्त लोगों के सामने नरेंद्र मोदी रहते हैं लेकिन विधानसभा में ऐसा नहीं है। नरेंद्र मोदी खुद को जनता से जोड़ने की कोशिश तो करते हैं लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आता। राजस्थान व मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में कितना अंतर था इससे अंदाजा लगाया जा सकता है।
मीडिया का रोल
मीडिया सरकार के समर्थन में आईटी सेल बन चुकी है। प्रदेश में किसी की बाइक भी पंचर हुई तो टीएमसी से जोड़ देती है। हत्या के मामलों में पहली जांच राजनीतिक द्वेष की होती है। मीडिया की एकतरफा रिपोर्टिंग अब मजाक बन गई है। ऐसे में एक बड़ी संख्या का इससे मोह भंग होता नजर आ रहा है। लेकिन इनकी एकतरफा रिपोर्टिंग को ऐसे ही खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि लोगों के बीच जो नफरत भरी गई है उसमें टीवी मीडिया का योगदान सबसे अहम है।
बंगाल चुनाव में भाजपा बारात लेकर तो पहुंच गई है लेकिन उसके पास दूल्हा नहीं है। ऐसे में जनता तिलक लगाए तो लगाए किसे इसे लेकर कन्फ्यूजन है यही कन्फ्यूजन उसके लिए आफत बनेगा ऐसा तमाम सियासी विशेषज्ञ मानते हैं।
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source: https://www.molitics.in/article/790/west-bengal-elections-bjp-has-no-ground-in-bengal-but-media-trying-to-number-one-party
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